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मृत्यु है, न भय, न संसार है । इस स्थिति में मुक्तात्मा सदा सुखी जो पुण्य मुझे प्राप्त हुआ है उससे भव्यजीव दुःखमुक्ति के क्यों न होगी ?
लिए श्री जिनधर्म का सम्यग् बोध पावे । सिद्ध भगवान् का सुख अवाच्य और अनुभवगम्य है ।।
अन्त में निर्देशक प. पू. सिद्धान्तदिवाकर आचार्य श्री
मद्विजय जयघोष सूरीश्वरजी म. सा तथा अनुवादक मुनिवर श्री सिद्धों का सुख अवाच्य है, मात्र अनुभवगम्य है । जैसे
स अजितशेखरविजयजी ने संशोधन एवं प्रस्तावनालेख का दायित्व स्त्रीसुख कुमारी के प्रति अवाच्य है मात्र स्त्री को ही उसका
मुझे सौंप कर अपूर्व स्वाध्यायलाभ प्रदान किया अतः इनके प्रति अनुभव है । यह बात दृष्टान्त से विशद की है ।
___ मैं सदा ऋणी रहूंगा। प्रस्तुत ग्रन्थ को महत्ता एवं सोपयोगिता
ग्रन्थ के वाचक महानुभावों को इतना ही कहना है कि मी अनेक बातें THAT Tो । एकमना मध्यस्थभाव से ग्रन्थ का अवलोकन करें । ग्रन्थकार ने सानो
अपनी सर्वतोमुखी प्रतिभा का परिचय दिया है । इतना ही नहीं ज्ञान के बल पर निर्मल और अविचल श्रद्धा प्रकटाने भी यह ।
। ग्रन्थ की गरिमा में चार चान्द लगा दिये हैं । हमें तो सिर्फ ग्रन्थ एक साधन है । अतः सम्मति-तर्क जैसे दर्शनप्रभावक
पढकर ज्ञान - चन्द्रिका का आनन्द लेना है और आनन्द के ग्रन्थों में इस ग्रन्थ की गणना की जाय तो अतिशयोक्ति नहीं
साथ साथ श्री जिन भगवान, श्री जिनशासन और उसके महान् होगी।
आचार्य भगवन्तों के प्रति बहुमान का भाव जगाना है । ग्रन्थकार का असीम औदार्य और कारण्य ।।
शान्तिनगर, अहमदाबाद पंन्यास कुलचन्द्र विजय गणि ग्रन्थपरिसमाप्ति में ग्रन्थकार असीम औदार्य एवं कारुण्य मार्गशीर्ष कृष्ण तृतीया का परिचय देते हुए अभ्यर्थना करते हैं - इस ग्रन्थरचना से वि. स. २०४९
શુદ્ધ સાધના માટે (१) सोमा अने. (२) ममत।
શુદ્ધ સ્વભાવની સાધનામાટે બે तत्यो सा१श्य छे. (१) मेनु अनन्य મહત્વ આકી અહોભાવવાળી દ્રષ્ટિ અને (२) ममता.
(૧) પહેલામાં એવો અહોભાવ થાય કે “આ અરિહંત ભગવાન! આવા सिवान
અહો! આ શાંતિનાથા ભારે ચકવર્તીપણાનો ઠાઠ છોડી સિદ્ધ બનવા नीजी ५७॥
! ! म ! हो! આવા અનંત અનંત ગુણોથી ભરેલા અને કર્મની બેડીથી તદ્દન મુકાયેલા સિદ્ધ ભગવાન! વાહ વાહ! ધન્ય આત્મા
(૨) બીજામાં એવી મમતા થાય કે મારા અરિહંત- સિદ્ધ ભગવાન! મને પ્રેરણા આપનાર સાધનામાં બળ પૂરનાર, મારા પરમ ઉપકારી!
સુલતાને ધર્મલાભનો સંદેશો ભગવાને મોલાવ્યો ત્યારે તેને આ જ થયું'मा मान महावीर
નમુત્યુë બોલતી વખતે મનમાં અહોભાવથી અને મમતાથી અરિહંત રમ્યા કરે તો જ શ્રી લલિતવિસ્તરા શાસ્ત્ર કહ્યા મુજબ “મુદક્ષુ પરિપૂર્ણ લોચન' અર્થાત ચૈત્યવંદનમાં નમુત્થણે બોલતી વખતે मोहर्ष सुधी भरली बने....
- પૂજ્યપાદ ન્યાયવિશારદ સ્વ.ગચ્છાધિપતિ આચાર્યદેવશ્રી વિજય
ભુવનભાનુસૂરીશ્વરજી મહારાજ. 'न१५E USRA (Aria) पुस्तमा.
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