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________________ दान ऊपर-रत्नचूडकुमारनी कथा-शेठाणी अने सोढीनी कथा तेम नासिका मरडवा लागी, शिरपर मारेली कूतरीनी जेम जलदी चीत्कार शब्दो करवा लागी अने देडकीनी जेम ठेकती ठेकती वारंवार पडवा लागी. जाणे करडवा आवेली सर्पिणी होय, नखवाळी 'नकुली होय अने जाणे गांडी थई होय तेम ते रुदन करती अने अफळाती आ प्रमाणे बोली, "अरे रांड, शुं मारा घरनी पंचात में तने सोंपी छे? लोको पोतानी पंचात छोडीने बीजानी पंचात ज करवा जाय छे. हरडे, एरंडानी जेम लांबी थई पारका घरमां पेसीने रही शकती नथी के जेथी वृद्धानी जेम मने पण शीखामण आपे छे. जेनुं माधुं भांग्युं छे. एवी हे भुंडी रांड, तुं पंडितानी जेम मने शिक्षा आपे छे, पण अंदर कीडा पडवाथी सडी गयेली तारी जीभने ज शिक्षा आप. जे तुं आq बोले छे, तो आजे हुं तारुं मुख भांगी नाखीश, दांत पाडी नाखीश अने ताळवामांथी जीभ खेंची लईश. अरे चावळी, पोताना आत्माने पंडित माननारी एवी तें पहेला अनेक भोळा लोकोने तरछोड्या हशे, पण अहिं तो हुं सोढी छु. कदि तें मने जोयेली नहीं होय, पण लोकोनी वार्ताथी मारूं नाम पण शुं नथी सांभन्यु? जेथी तुं बीजा सामान्य माणसनी जेम मने पण तरछोडवानी इच्छा करे छे? दरेक राफडे घो होती नथी, कोई ठेकाण सर्प पण होय छे." सोढीनां आवां कटुवाक्योथी ते महेमान स्त्री भय पामी. ते पछी ते सोढीना पगमां पडीने ते स्त्री आ प्रमाणे बोली, "बहेन, मारो आ एक अपराध माफ कर, हवे हुं आQ कदि पण बोलीश नहि." ।।१०००।। ते वखते वढवाड करनारी सोढी क्रोधथी ते स्त्रीने मजबूत पाटु मारीने बोली, "अरे लवारो करनारी रंडा, तुं मने बहेन कहीने केम बोलावे छे? हुं तारा बापथी उत्पन्न थयेली छु, एम तें हाल शी रीते जाण्यु? तुं मने नागरिपणानी युक्तिथी लोकोनी आगळ मानी जणी बहेन कहीने बोलावे छे, पण धूर्त्तना लक्षणोथी में तने ओळखी लीधी छे के तुं गायना मुखवाळी वाघण छे. तारी जेम अमे पण शुंदंभ नथी शीख्या? अरे मूढा, प्रथम मने गाळथी वढीने हवे खमाववाने आवे छे, तो तुं पहेलां पाणी पीने पछी घर पूछे छे." आवां मलिन वचनोथी सोढीए तेणीनी साथे वारंवार वढवाड करवा मांडी. एटले ते महेमान स्त्रीए पोताना हृदयमां आ प्रमाणे विचायु, "आ स्त्री अग्निनो भडको जोई भडकेली गधेडीनी जेम प्रवर्ते छे. ते गधेडी आगळ दांतथी करडे छे अने पछवाडे पगथी पाटु मारे छे. तेथी आ बाईना मुखमां तो जो विष्टाए भरेलुं सळगतुं उंबाडीयुं नाख्युं होय, तो तेथी ते प्रथम बळे अने पछी विष्टाथी लीपाय. आ लाज वगरनी बाईनी साथे कजीयो 1. नोळीयानी मादा. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 67
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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