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________________ दान ऊपर-रत्नचूडकुमारनी कथा पाळवा योग्य एवा नियमो पाळवा; नहि तो ते पुरुष भ्रष्ट थई जाय छे. ।।६६९।। मुसाफरने जोवा योग्य अने नहीं जोवा योग्य वस्तु विषेनो क्रम : मुसाफरे तीर्थ, देश, वस्तुओ, प्रातःकाळे पोतानो हाथ, प्रौढ पुरुषो, शुकनो अने छायापुरुष (पडछायो) विलोकवा. विद्वान् पुरुषे हमेशां सूर्यचंद्रनुं ग्रहण, जळ वरसवाने वखते मोटो कूवो अने संध्याकाळे आकाश जोवू नहि. कन्यानी योनि, पशुओनी क्रीडा, अद्भुत रूपवाळी नग्न स्त्री, संभोग अने चित्कार जोवां नहि. जळ, तेल, हथीयार, मूत्र अने रूधिरनी अंदर विद्वान् पुरुषे पोतानुं मुख जोवू नही, कारण के तेथी आयुष्यनो क्षय थाय छे. विशेष उपदेशनो क्रम : | हे वत्स, प्रति वर्षे पोताना द्रव्यने अनुसारे स्वगुरु, ज्ञातिना वृद्ध माणसो अने साधर्मिक बंधुओनी भक्ति करवी, विवेकी पुरुषे प्रतिवर्षे तीर्थयात्रा करवी अने सद्गुरुनी समक्ष आलोचना लेवी. हे पुत्र, ज्यां बालराजानु, स्त्रीरों, बे राजानुं अने मूर्ख राजानुं राज्य चालतुं होय, त्यां रहेQ नहि. हे पुत्र, जे राज्यमा राजा सारो होय, वेपारीओ सारा होय अने बधा लोको व्यवहार परायण होय, तेवा राज्यमां तारे रहे. , आटलुं कह्या पछी रत्नाकर शेठ फरीथी बोल्यो, हे वत्स, में तने जे आ शिक्षा आपी छे, ते सर्व माणसोने सरखी रीते लागु पडे तेवी छे. हवे तने खास विशेषपणे कहुं छं ते सांभळ. समुद्रनी अंदर बधा मळीने सवालाख द्वीपो छे, (लौकिक अपेक्षा ए कथन छे) तेनी अंदर केटलाएक प्रगट छे अने केटलाएक अप्रगट छे. तेमां प्रगट एवा द्वीपोनी अंदर चित्रकूट नामनो एक द्वीप छे, ते धूतारा लोकोना स्थान रूप छे. तेमां अनीतिपुर नाम विस्तारवाळु नगर छे, ते नगरनी अंदर अन्याय नामे राजा, अविचारक नामे मंत्री, सर्वग्राहि नामे कोटवाळ अने अशांति नामे पुरोहित छे, वळी ते नगरमां गृहीत भक्षक नामे नगरशेठ मूलनाशक नामे तेनो पुत्र, यमघंटा नामे अक्का अने रणघंटा नामे तेनी पुत्री वेश्या रहे छे. आ प्रमाणे राजा वगेरे सर्व त्यां पोतपोताना नाम प्रमाणे गुणवाळा छे. ते सिवाय चोर, जुगारी अने धूतारा लोको त्यां घणा छे. जो कोई अजाण्यो माणस ते नगरमां कदि आवी चडे. तो त्यांना लोको तेनुं सर्वस्व लई ले छे. हे वत्स, तारे ते नगरमां जq नहि. ते सिवाय बीजे स्थळे जवू. हे शुद्ध बुद्धिवाळा पुत्र, ते बीजे स्थळेथी लाभ मेळवीने तारे पाछा सत्वर आववं. शेठना आ वचनो कबूल करीने रत्नचूड कोटी सुवर्णना श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 49
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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