________________
___ मंत्री सुबुद्धिनी अवांतर कथा फळने आपे छे. ते धर्म सुंदर शाल-वृक्ष दानादिक भेदथी 'चतुःशाल (चार शाखावाळो) छे अने ते सकळ सर्वज्ञ प्रभुओना व्याख्यान समये संतापने वारनारो छे. ते (चार पैकी) एक शाळ (दानादि एक प्रकारनी) धर्मनी विशाळतानुं वर्णन करवाने कोण समर्थ थई शके तेम छे? के ते मार्गे चालनारा अनंत प्राणीओ परमपद-मोक्षने पाम्या छे. ते वैराग्य सहित धर्मना सर्व पुरुषार्थ वडे सिद्धिने आपनारा छे, ते छतां पण दातारपुरुषनो हाथ ते सर्वनी उपर आवी शके छे. आ जगतमां प्रथम सर्वथी मोटो मेरुपर्वत छे. तेनाथी मोटी पृथ्वी छे. पृथ्वीथी मोटो समुद्र छे. समुद्रथी मोटो अगस्ति छे. अगस्तिथी मोटु आकाश छे. आकाशथी मोटो सूर्य छे. सूर्यथी मोटो अंधकार छे. अंधकारथी मोटुं सुदर्शन चक्र छे अने तेनाथी मोटो विष्णुनो हाथ छे. ते हाथ पण दातारना हाथनी नीचे आवे छे. एम लोकोमां संभळाय छे. 4आ विश्वनी अंदर सर्व गुणोना आधाररूप एवा पुरुषर्नु पराक्रम त्याग-दानने अनुसरेला मार्गणोना समूहना मुखथी विख्याति पामे छे. जेम दीपथी अंधकारमा रहेलो पण वस्तुओनो समूह प्रकाशमान थाय छे, तेवी रीते एक दानना गुणथी बीजा सर्व गुणो प्रकाशमान थाय छे. पण दाननो गुण बीजा गुणोथी प्रकाशमान थतो नथी. जेम वर्षाऋतुमां ज्यां वरसाद वर्षे त्यां ते वरसाद शस्यनी संपत्तिने माटे थाय छे. तेवी रीते पृथ्वीमां ज्यां दान अपाय त्यां ते दान शस्यसंपत्तिने माटे थाय छे. जेम वृक्षोमां कल्पवृक्षपणुं, गायोमां कामधेनुपणुं, मणिओमां चिंतामणिपणुं अने कुंभोमां कामकुंभपणुं रहेलुं छे तेओनी ते यशोवृद्धि पोतपोतानी जातिमां दानने लईने थयेली छे. तेवी रीते मनुष्योने पण स्वजाति अने परजातिमां दानने लईने यशोवृद्धि थाय छे. जे मनुष्य शील वगेरे गुणोने धारण करनारो होय ते एकलो-पोते ज आ संसार समुद्रने तरी जाय छे अने दानना गुणथी तो दाता अने दान ग्रहण करनार बंने आ संसार समुद्रने तरी जाय छे. तेथी सर्वथी दानधर्म अधिक छे. दानथी विपत्तिओ दूर थाय छे अने पगले पगले 1. जेम विशाळ शाल-वृक्ष चार शाखावाळो होय छे. तेम धर्म-दान, शीळ, तप अने भाव
ए चार भेदवाळो होय छे. 2. जेम विशाळ शाल-वृक्ष तेनी छायामां रहेला प्राणीओना संतापने हरे छे तेम धर्म, प्राणीओना संसार संबंधी संतापने हरनारो छे. 3. चउ शालदान शील तप अने भाव पैकी गमे ते एक शाल-भेद-प्रकार. 4. पुरुषतुं पराक्रम त्यागने अनुसरेला एटले छोडेला मार्गण-बाणोना समूही विख्यात थाय छे. दातारपक्षे जेमने दान आपवामां आवे तेवा मार्गणो-याचको ते दातारनी विख्याति करे छे. 5. वरसाद शस्यसंपत्ति
धान्यनी संपत्तिने माटे थाय छे अने दान शस्य-संपत्ति-प्रशंसनीय संपत्तिने माटे थाय छे. 6. निःस्वार्थपणे दान देनारो तेमज लेनारो साधु बंने जन्म मरणनो अंत करी शके छे.
श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग
41