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________________ मंत्री सुबुद्धिनी अवांतर कथा करी द्रव्य, दान आपी ते गुरु पासे विधिपूर्वक दीक्षा ग्रहण करी. तेणे राज्यनो त्याग कर्यो, तो पण ते 'क्षमाने धारण करतो, शुद्ध अंतःपुर साथे युक्त थतो, सदसि प्रीतिने वहन करतो पोताना हृदयमां 'तंत्र, मित्र, नमस्कारना मंत्रने संभारतो, दुरंतनी जेम 5अंतरंग-अरिनु चितवन करतो, त्रण शक्तिनी जेम प्रसिद्धिने आपनारी रत्नत्रयीने धारण करतो, 'सेनाना चार अंगोनी जेम धर्मना चार भेदने दर्शावतो, षट्गुणोनी जेम षट्कायो, भावथी पालन करतो अने सात अंगोनी जेम सात तत्त्वोने जाणतो ते आ पृथ्वी उपर शोभतो हतो. तेणे समग्र विषय संयुक्त शत्रुवर्गने जीती लई अनंत केवळज्ञाननी लक्ष्मी संपादन करी. ते पछी तेणे केटलाएकने हितकारी 11साधुत्व, केटलाएकने 12अमूल्य रत्नो, केटलाएकने नाना देश (विविध आदेश) तथा क्षमा, भव्य प्राणीओने कल्याण, अभव्य प्राणीओने शोक, केटलाएकने घणुं मान अने केटलाएकने शुद्धि आपनारुं स्थान आप्यु. आ प्रमाणे ते पोतानुं आयुष्य पूर्ण करी अव्ययपद-मोक्षने प्राप्त थयो. अने त्यां अनंत सुखनो भोक्ता तथा ज्ञानीओनो शिरोमणी बनी गयो." ब्रह्मगुससूरि कहे छे, "हे राजा! आ वार्ता उपरथी तमारे समजवानुं छे के, धर्मनो फक्त पक्षपात करवो, ते पुरुषोने आ लोक तथा परलोकमां सुखदायक थाय छे. तो पछी ते धर्म आचरवाथी शुं न थाय? 13छाया करनार, लोकोना आधारभूत अने 14सुमनः श्रेणीथी सुशोभित एवो धर्मरूपी कल्पवृक्ष वांछित 1. राजापक्षे क्षमा-पृथ्वी मुनिपक्षे क्षमागुण. 2. राजापक्षे शुद्ध अंत:पुर अने मुनिपक्षे शुद्ध हृदयप्रदेश. 3. राजापक्षे सदसि प्रीति-सत्-असि-सारा खड्ग उपर प्रीति अने मुनिपक्षे सदसि-पर्षदामां प्रीति. 4. राजापक्षे तंत्र-युक्ति, मित्रोने नमस्कार अने मंत्र-विचारणा, मुनिपक्षे तंत्र (शास्त्र) युक्ति, मित्र-मैत्री अने नमस्कार मंत्र-नवकार मंत्र. 5. राजापक्षेअंतरमा पोताना देशना शत्रुओर्नु चितवन. मुनिपक्षे-अंतरंग शत्रु-अंतरना काम क्रोधादि शत्रुओर्नु चितवन. 6. राजापक्षे त्रण शक्ति-प्रभुता, मंत्र अने उत्साह. मुनिपक्षे ज्ञान, दर्शन चारित्ररूप त्रण रत्नो. 7. हाथी, घोडा, रथ अने पायदल-ए सेनाना चार अंगो अने दान, शील, तप अने भाव-ए धर्मना चार भेदो. 8. राजापक्षे संधि वगेरे छ गुण. मुनिपक्षेघट्काय जीव- पालन. 9. राजापक्षे सात अंगो. (राज्यना आधारभूत श्रेष्ठी पुरोहित प्रधानादिक सप्तांग) मुनिपक्षे (जीव अजीवादि) सात तत्त्वो. 10. राजापक्षे-विषयसंयुक्त-पोतपोताना देशो सहित. मुनिपक्षे विषय सहित शत्रुओ. 11. राजापक्षे सज्जनपणुं अने मुनिपक्षे साधुपणुं. 12. राजापक्षे अमूल्य रत्नो अने मुनिपक्षे ज्ञानादि रत्नो. 13. जेम कल्पवृक्ष छाया करनार छे, तेम धर्म छाया-क्रांति अथवा शांतिनी शीतलता आपनार छे. 14. कल्पवृक्ष सुमनः श्रेणी-पुष्योनी पंक्तिथी सुशोभित छे. धर्म सुमनः श्रेणी-विद्वानो अथवा देवताओनी श्रेणीथी सुशोभित छे. 40 श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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