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मंत्री सुबुद्धिनी अवांतर कथा उज्जवळ प्रासादो जाणे धर्मरूपी राजाना महेलो होय तेवा रचाव्या. 'विशाळ दानसहित, त्रिपदीयुक्त अने दुष्ट वारणना शब्दोने आपनारी पौषधशाळाओ ते धर्मरूपी राजानी हस्तिशाळाना जेवी तेणे रचावी. संघने साथे लई, जिनमंदिर सहित तथा साधुओनी भक्तिपूर्वक ते पापथी बचवा माटे प्रति वर्ष यात्रा करतो हतो. जाणे पापरूपी राजाना सात अंगो होय तेवा दुर्व्यसनोने तेणे निवार्या अने तेने ठेकाणे तत्काळ सात क्षेत्रोने स्थाप्या. अनीतिनी जेम मारीनो सर्वथा तेणे अटकाव कर्यो अने अमारीना पटहनी अने न्यायघंटानी घोषणा करावी. आ प्रमाणे ते सुबुद्धि राजा धर्मपरायण थतां राज्यना तमाम लोको पण धर्मधुरंधर थइ गया. ते सर्व रीते घटे छे. कहेवाय छे के, "यथा राजा तथा प्रजा"
एक वखते ते नगरनी बहार धर्मघोष नामना सूरि आवी चड्या. वनपालना मुखथी ते खबर जाणी राजा सुबुद्धि चतुरंग सेना सहित, छत्र तथा चामरथी सुशोभित बनी अने अंतःपुरना परिवारने साथे लइ ते गुरुने वंदन करवाने गयो. पांच अभिगम करी अने गुरुने विधिथी वंदना करी राजा योग्य आसने बेठो, एटले गुरु आ प्रमाणे धर्म संभळाववा लाग्या-"आ जगत उपर जे इंद्र वगेरे राजाओ बनेला छे ते बधा धर्मथी ज बनेला छे. जो धर्म कर्यो न होय तो तेमने राज्यनी प्राप्ति क्यांथी थाय? जेओ आ जगतमां धर्मरूपी महाराजानी शुद्ध आज्ञा उठावे छे, तेओने ते कर्मराजानो भय कदि पण लागतो नथी अने जेओ ते महाराजानी आज्ञा मानता नथी, तेमना राज्यनो क्षय थई जाय छे अने सदा मृत्युना भयने आपनारो वनवास करवो पडे छे. शुद्ध राजामां दोषारंभ होय पण ते तेने बे घडीवार रुचे छे, तेथी शुक्लपाक्षिकता करवी जोईए, तो हे राजा, तमे शुक्लपाक्षिकताने वधारो. ते धर्म यतिधर्म अने श्रावकधर्म एम बे प्रकारे कहेलो छे. ते बंने धर्मो मेरुपर्वत अने सर्षवना दाणा तुल्य गणाय छे.' .. धर्मघोषसूरिनो आ उपदेश सांभळी सुबुद्धि राजानो भाव हर्षथी यतिधर्म उपर थई आव्यो. प्रौढ पुरुषोनी बुद्धि प्रौढ वस्तुने ग्रहण करवामां ज प्रवर्ते छे. पछी ते राजा सुबुद्धिए पोताना पवित्र पुत्रनी उपर राज्यनो महान भार आरोपण 1. पौषधशाळा दान सहीत अने दुष्टवारण एटले दुष्टजनोने निवारवा धर्मशिक्षण, दान तथा
पौषधना-ए त्रण स्थानयुक्त शब्दोने आपनारी होय छे अने गजशाळा. दान-मद सहित. त्रिपदी-गजबंधनथी युक्त अने दुष्ट एवा वारण-हाथीओने वश करवाना शब्दोने आपनारी होय छे. 2. राजापक्षे-दोषनो आरंभ करवामां आवे तो पण ते तेने बे घडीवार रुचे अने शुक्लपाक्षिकता एटले शुभ-शुद्ध क्रिया रुचि तेने वधारे. राजा-चंद्रपक्षे-दोषारंभ-रात्रिनो आरंभ बे घडी रहे अने शुक्लपक्ष करे. 3. यतिधर्म मेरुपर्वतना जेवो छे अने श्रावकधर्म सर्षवना दाणा जेवो छे. ते बंनेमां तेटलो तफावत छे. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग