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________________ मंत्री सुबुद्धिनी अवांतर कथा पडे छे. आ प्रमाणे सेनापतिनुं न्याय युक्त वचन सांभळी ते न्यायी अने श्रेष्ठ एवो मंत्री विश्वनी रक्षा करवानी खातर युद्धने माटे तैयार थइ गयो . हवे शुद्धि वगरनो अने कुबुद्धिवाळो ते राजा पोतानुं सैन्य तैयार करी अपशकुनोए वार्या छतां पण पोताना नगरनी बहार नीकल्यो. आ वखते हृदयमां बने प्रकारे सदय एवा सुबुद्धि मंत्रीए आ प्रमाणे विचार कर्यो. आ युद्धमां बीजा घणा पुण्यवाळा अने सारा माणसो मराशे, तेथी मने महा पाप लागशे. तो ते सर्वेने नकामा शा माटे मारवा ? मात्र पापी अने दुष्टबुद्धिवाळा आ युद्धमां उद्यत थयेला राजाने स्वबुद्धिथी समजावं. " आवुं विचार प्रभातकाळे दीनता वगर चडी आवेला सैन्यमां जमणा हाथमां पेलो दंड लई ते राजा पासे आवी आ प्रमाणे बोल्यो, "अरे राजा ! जो तुं धर्मने मानतो होय तो हृदयमां धर्मने धारी राख; नहीं तो आ युद्धमां तारा हास्य रहित मुखमां लीलुं तृण (तरं) तारी रक्षा करनारुं थशे." मंत्रीनां वचन सांभळी धर्म रहित एवो ते राजा जाणे अधोगतिना मार्गने साक्षात् जोतो होय, तेम अधोमुख थई उभो रह्यो. ते पछी संपूर्ण पुण्यवाळा मंत्रीए उपेक्षा करेलो ते अधम राजा पोताने प्रिय एवा पापने लईने ते पापथी उत्पन्न थयेल अलक्ष्मी (निर्धनता) ने प्राप्त थयो. पछी 2 राज्य धर्मथी भ्रष्ट थयेलो अने आ संसारमां रक्त थयेलो ते जडाशय द्विज दांते तृण लइ कर्मफल मेळववाने वनमां चाल्यो गयो. राजा गया पछी ते सबुद्धि मंत्रीनो मोटो उत्सव साथे नगरमा प्रवेश थयो . सेनापतिए तेनो विधिपूर्वक पट्टाभिषेक कर्यो. ते समये अलक्ष्मीरूप पर्वना निकळवाथी अने लक्ष्मीना आववाथी लोकोमां दीपोत्सवी पर्वना जेवो उत्सव थई रह्यो. एक वखते श्रीगुरुना मुखथी द्वादश व्रत लई ते मंत्री जैनशासननो प्रभावक परम श्रावक बनी गयो. धर्मवडे सौधर्मदेवलोकना करतां पण वधारे सुख आपनारा महान राज्यने प्राप्त करी ते मंत्री धर्मना साम्राज्यने एकछत्रवाळुं क. ।। ५२५ ।। सत्त्वनी रक्षाथी रमणीय अने गुणोथी भरपूर एवा श्रीजिनभगवानना 1. सदय एटले दया सहित अने सत्-अय शुभ परिणामवाळो - सद्भागी ते बंने प्रकार. 2. अहिं एवो अर्थ पण थाय छे के जे धर्मथी भ्रष्ट थयेलो अने संसारमां रकत थयेलो कोइ जड़ - हृदयवाळो मिथ्यात्वी पुरुष ब्राह्मणोने हाथे तृण-दर्भ लई कर्म - क्रियानुं फल मेळववाने वानप्रस्थ थइ वनमां जाय छे. 3. दीवाली पर्वमा लोको अलक्ष्मीने काढे छे अने लक्ष्मीने बोलावे छे. 4. सत्त्वनी रक्षा एटले जिनपक्षे प्राणिरक्षा अने राजापक्षे बलरक्षा. 38 श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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