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________________ मंत्री सुबुद्धिनी अवांतर कथा : ते पछी वहाणमां आणेला घोडाओने मंत्रीए पोतानी वस्तुओथी खरीद कर्या. ते घोडाओने लई अने राजानो हुकम मेळवी, चार प्रियाओने साथे लइ अने आठ कोटी सुवर्ण मेळवी, धारानगरथी सामा आवेला पोताना मित्र सेनापतिए सेवेलो, त्यांना राजा अने मित्रोना समूहे मोकलेला अगणित सैन्यथी युक्त थयेलो, चळकता सैन्यना बळथी पृथ्वीने चलायमान करतो, ठेकाणे ठेकाणे सारा राजाओनो प्रचंड दंड लेतो अने दुर्मद राजाओनो निग्रह करतो ते मंत्री अनुक्रमे पोताना नगर नजीक आवी पहोंच्यो. त्यां रात्रे पेला खाटला उपर बेसी तत्काळ पोताने घेर आव्यो. त्यांथी पेला दंड अने कामकुंभने नीतिना बळयुक्त एवो पोताना लश्करमां ते लइ आव्यो. ।।५००।। पछी प्रभा युक्त एवा प्रभातकाले तेणे सेनापतिने पूछ्युं के, "हवे मारे आ राजानो भेद करवो के दंड करवो? ते कहो, "सेनापति बोल्यो, "हे विभु! अन्यायथी वर्तनारा आ राजानो तो हमणा दंड करवो घटित छे, अथवा मर्मने भेदनारो भेद करवो पण घटित छे." सेनापतिना वचन सांभळी ते गुणी मंत्रीए लोक वृत्तांतने जाणनारा एक दुतने विशेष शिक्षा समजावी सत्वर राजानी पासे मोकल्यो. द्वारपाळे खबर आप्या एटले राजाए ते दूतने पोतानी पासे बोल्यो. दृते राजाने प्रणाम करी प्रथम पोताना स्वामीना घणा गुणो कही संभळाव्या. पछी ते प्रजापतिना 'बंने प्रकारे बलना भेद जणाव्या. ते सांभळी राजा घणो गुस्से थयो अने क्रोधथी युद्ध करवा तत्पर थइने बोल्यो, "अरे! जे सुबुद्धि पूर्वे मारो एक नोकर हतो ते सुख सहित, कर्म करी कांईक द्रव्य मेळवी अने ते द्रव्यना बलथी केटलुक सैन्य मेळवी अहिं आव्यो छे, ते अत्यारे मारी पासे दंड मांगे छे. जे निर्धन माणस होय ते धन मेळवी जगतने तृणवत् माने छे, पण तेने खबर नथी के जेम जिह्वा दांते चावेली वस्तुने सुखे ग्रहण करेछे, तेम हुं पोतानी मेळे आवेलुं तेनुं सर्वस्व सुखेथी ग्रहण करी लईश." राजाना आ वचनो दूते आवी मंत्रीने कह्यां, त्यारे जगतमां एक ज सुभट एवो सेनापति आ प्रमाणे श्रेष्ठ वचन बोल्यो, "आ जगतमां सर्वत्र धर्मथी जय थाय छे. ते धर्मने राजा मानतो नथी, तो ए राजानो पराजय थवानो ज आ बाबतमां सूर्य साक्षी छे. बीजो पण कोइ द्वेषी मनुष्य होय, तेने राजाए पोताना बळथी तत्काळ छेदी नाखवो जोईए, तो आ राजा पोते धर्मनो द्वेषी छे अने तेथी करीने आखा विश्वनो शत्रु अने अन्यायी छे. तेने शा माटे छेदवो नहीं? आचार शब्दमां चा अक्षरना शिरनुं छेदन करी तेमां एक पांखडी वधारतां ते रणशूरा सुभटोने लेखमां बतावेल आचार ते आधाररूप थइ 1. बल एटले सामर्थ्य अने सैन्य ते बंने प्रकारे. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 3
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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