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पद्मसेन राजानुं चरित्र
कोदंड धनुष्यने दंडना जेवुं अने मार्गण - बाणने मार्गण - याचकना जेवुं कोण न मानतुं? अर्थात् प्रजाजनो शत्रुना धनुष्य-बाणने सामान्य काष्ठ अने याचक समान मानता हता. ते लोकोने न्याय आपतो अने गुरुओने विनय आपतो (विनय करतो हतो). ते जाणे ते लोको अने गुरुओए तेने अदलो बदलो करीने न्याय अने विनय आप्या होय, तेम लागतुं हतुं. ज्यारे ते राजा पृथ्वी उपर राज्य चलावतो त्यारे दंड तो छत्रमां ज हतो, ±त्रास मणिओने ज थतो हतो, कर पीडन विवाहमां ज थता, भंगनी वात सोनाने घसवानी कसोटीमां अथवा खारवाळी जमीनमां ज थती हती. औदार्य, गांभीर्य, धैर्य अने वीर्य वगेरे उज्जवळ गुणोथी युक्त एवो ते राजा पद्मसेन एक वखते रात्रिने छेल्ले पहोरे पोताना मनमां आ प्रमाणे विचार करवा लाग्यो"दृष्टिवाळा मनुष्यने स्वस्थतावाळी दृष्टि होय ते छतां पण सूर्य विना सारी रीते तेने अद्भुत दर्शनशक्ति आवती नथी. भरपूर जळ भर्युं होय ते छतां रत्नाकर समुद्रने चंद्र सिवाय तेना घाटा जळमां मोटी भरती आवती नथी, पाषाणरूपने प्राप्त थयेलुं सुवर्ण अग्नि सिवाय लोकमां कल्याण नामवाळं गणातुं नथी. अने कुकडा तथा ककुभपक्षीना बच्चांनी आंखो 'कृष्णचित्रक सिवाय ऊघडती नथी, एम लोकोमां कहेवाय छे. तेवी रीते माणस विद्वान होय तो पण ते गुरु सिवाय मोक्षपदनुं स्थान थतो नथी, तेथी मारे पण जो कोई धर्मगुरु होय तो वधारे सारं." आ प्रमाणे राजा पोताना चित्तमां धर्मने माटे नवी चिंता प्रगटावी अने प्रातःकाळनुं कृत्य करीने ते पोताना सभास्थानमां आव्यो. ।। १०० ।। तेवामां ते राजाना मनोरथोनी साथे ज ते नगरीनी बहार ब्रह्मगुप्त नामना एक सूरि घणां साधुओना परिवार साथै आवी चड्या. कारण के पुण्यवान् पुरुषोनुं मनमां चिंतवेलुं कार्य तत्काल फलीभूत थाय छे. ते ब्रह्मगुप्तसूरि पांच इंद्रियोना संवरने धारण करनारा, नव प्रकारनी ब्रह्मचर्यनी गुप्तिए युक्त, चार कषायोथी निर्मुक्त, पांच प्रकारना आचारने पाळनारा, पंचमहाव्रतमां तत्पर, त्रण प्रकारनी गुप्तिथी पवित्र, पांच समितिने वहन करनारा, धर्मना धुरंधर अने छत्रीश गुरु गुण तथा बीजा गुणोथी युक्त हता. तत्काल वनपाले आवी महाराजा पद्मसेनने विज्ञप्ति करी के, "देव, सद्भाग्ये आप गुरुना आगमनवडे वृद्धि पामो छो" आ वधामणी सांभळी ते विद्वान् राजाए हर्ष अने उत्कंठाने वश थइ अंग उपर रोमांचरूप कवच धारण करीने ते वधामणी आपनारा वनपाळने घणुं द्रव्य इनाममां आप्युं. पछी तत्काल ते राजा हार, अर्धहार, मुगट अने कडां वगेरेथी विभूषित थइ श्रेणीबंद अश्वारोथी
1. अर्थात् तेमना धनुष्यो दंड लाकडीना जेवा अने बाणो याचकना जेवा निर्माल्य बनी गया. 2. त्रास वेध. 3. विवाहपक्षे करपीडन - पाणिग्रहण अने राजापक्षे करनी पीड़ा. 4. कृष्णचित्रक एक जातनो वेलो थाय छे. 5. "पुण्यवतां पुंसां शीघ्रं फलति चिन्तितम्"
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श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग