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________________ पद्मसेन राजानुं चरित्र शोभित बनी एक मोटा गजेंद्र उपर बेसी प्रधानो, मंत्रिओ, सामंतो, शेठीआओ अने सेनापतिथी युक्त थइ, अंतःपुरनो परिवार अने पायदल सेनानी पंक्तिओ साथे राखी अने गंधर्वोना गीत, संगीत साथे वारांगनाओनो समूह लइ चारणोना घोष साथे उत्तम प्रकारना वाजिंत्रोना नाद करावतो अने दीन याचक वगेरेने दान आपतो, सारो पोशाक पहेरी युक्तिपूर्वक गुरुने भक्तिथी वंदना करवाने वनमां आव्यो. त्यां गुरुना दर्शन थतां पोते राजाए बे चामर, छत्र, मुगट, शस्त्र अने वाहनने छोडवारूप पांच अभिगम कर्या. त्यां कोइ ध्यान करता, कोई भणतां, कोइ भणावता अने कोइ कायोत्सर्ग करी रहेता एम विविध क्रिया करनारा विद्वान् अने सदाचारी साधुओने जोई राजाने अत्यंत हर्ष उत्पन्न थइ आव्यो. पछी जाणे जंगम कल्पवृक्ष होय तेवा ते गुरुने त्रण प्रदक्षिणा करी राजाए आदर पूर्वक विधिथी वंदना करी, ते पछी राजा बीजा पवित्र मुनिओने हर्षथी नमन करीने ते योग्यस्थाने बेठो. त्यारबाद आशातनाथी भयपामनारा राजाए उचित स्थाने बेसीने गुरुने आ प्रमाणे विज्ञप्ति करी-"जैन गुरु निग्रंथ-परिग्रह रहित होय छे छतां पण 'रत्नसहित सुवर्णना समूहने आपे छे अने जगत्प्रभु जिनेश्वर भगवान् मात्र शेषा आपे छे तेथी आप मारे ते प्रभुथी पण अधिक छो. हुं आपy गुरुत्व जाणीने आपनी वसति-वासस्थाने आव्यो छु, तेथी हवे आप आदर सहित थइ मने सत्वर ऊच्च अने निर्भय करो." ।।११६।। गुरु बोल्या- "हे राजा सांभळ, तुं तेजनुं स्थानरूप कवि छे; तेथी खेद पामीश नहीं तुं देवगुरुनी आगळ बेसीजा सारा वंशमां थयेला गुरु सारा वांसनी जेम मौक्तिक सुखने आपे छे. जेम वांस पडी जता एवा प्राणीओना समूहने आधारभूत छे, तेम गुरु नरकमां पडता प्राणीओना आधाररूप छे. जेम वांस गुण-दोरीनुं स्थान तथा धर्मना ऊपकरणोनुं साधन छे, तेम गुरु सारा गुणोना स्थानरूप एवा धर्मनुं साधन छे, जेम वांस पर्वग्रंथिनी स्थितिवाळो छे, तेम गुरु धर्मना पर्वनी स्थिति-मर्यादावाळा अथवा पर्व निमित्ते स्थिति करनारा छे. हे राजा, सांप्रतकाले तमारे जे सारा वंशनी प्राप्ति थयेली छे, तेवी प्राप्ति पृथ्वी उपर तेना अर्थी एवा जीवोने थवी दुर्लभ छे. हे राजा, आ संसारमा जीव अने कर्मो काळथी अनादि छे, जो कोइ कहे के, "जीव अने कर्मो, ते बनेमा प्रथम कोण?" तो तेने पूछयूँ के, "कुकडो अने इंडु तेमां प्रथम कोण?" जेम मृत्तिका (माटी) अने सुवर्णनो संयोग अनादि छे, तेम ते जीव 1. अहिं विरोधाभास अलंकारनो परिहार एवी रीते छ के-गुरु रत्न-चारित्र रूपी रत्नने अने सुवर्ण-सारा वर्ण-अक्षर-ज्ञानना समूहने आपे छे. 2. ज्यां गुरुत्व भारेपणुं होय त्यां उच्चता प्राप्त थाय छे. 3. गुरुपक्षे मौक्तिक एटले मुक्ति संबंधी सुख अने वांसपक्षे मुक्ताफलनुं सुख-वांसमां मुक्ताफल उत्पन्न थाय छे. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 11
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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