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पद्मसेन राजानुं चरित्र सम्यग् दर्शनवाळा, गंभीर पवित्र अने वेष्टन सहित एवा मुनिओ ते नगरीमां बिराजता हता. अलंकार अने लक्षणोवाळा, सारा साहित्यवाळा, स्मृतियुक्त अने पुराणमतीने धरनारा बे प्रकारना 'विबुधो त्यां वसता हता. ते नगरीमां सत्पुरुषोनां मन अने गाडाओ अथवा सरोवरो मार्गगामी, सत् चक्रोथी युक्त अने ऊंची जातना जिनालयोथी युक्त हता. पोताना स्वामीने सदा वश रहेली अने तीर्थकरनी जन्मभूमिने लइने सुर-असुरोए नमन करवा योग्य एवी ते प्रशंसनीय महापुरी नगरीमां पद्मसेन नामे राजा हतो ते विष्णुनी जेम सदानंदकर अने बलयुक्त लक्ष्मीने वहन करनारो हतो. विष्णु जेम सदा-हमेशां नंद नामर्नु खड्ग करहाथमा राखनार छे, तेम ते सदा-हमेशां आनंदकर-आनंद आपनार हतो. विष्णु जेम बलयुक्त-बलदेवनी साथे युक्त अने लक्ष्मीने वहन करनारा छे, तेम ते बलयुक्त-बलवाळो अने राज्यलक्ष्मीने वहन करनारो हतो. ते राजा चंद्रनी जेम 'कळा, सौम्य अने सदाचारवडे युक्त थयेलो छतां पण ते दोषाकर अने राकागमन करवामां आदरवाळो न हतो. ते राजा पद्मसेननो प्रतापरूपी सूर्य कर-किरणोना प्रकर-समूहथी प्रकाशमान हतो, पण ते पोताना स्वजनोने छोडीने बीजा शत्रुजनने नव संख्यावाळा-नवा देहने करतो ते तेने घटित हतं. ते महाराजानो यश चंद्रना जेवो उज्जवळ हतो; छतां तेणे शत्रुओने चक्रधर, विष्णुना जेवा श्याम कर्या हता अने पोताना स्वजनोने हलधर-बलदेवना जेवा पीळा रंगना कर्या हता, ए घटित न हतुं. तेणे शत्रुओना समूहने जीतेला तेथी ते शत्रुओमां स्वदृष्टिथी । 1. विबुध एटले देवता अने विद्वान् देवताओ अलंकारवाळा, सारा लक्षणोवाळा, उंचा साहित्यसामग्रीवाळा, स्मरणशक्ति अने पुराण-प्राचीन बुद्धिवाळा अने विद्वानो अलंकारशास्त्र, लक्षण-व्याकरण, साहित्य, स्मृतिओ अने पुराणोने बुद्धिथी जाणनारा. 2. सत्पुरुषोना मन मार्गानुसारी, सज्जनोना चक्र-समूह तरफ रहेनार अने जिनालये-जिनभगवानमां लय पामनारा. अने गाडाओ मार्गे चालनारा, सच्चक्र-सारा पैडावाळा, अने उपर जिनालयने वहन करनारा. 3. सरोवरो सरस चक्रवाक (आदि) पक्षिओवडे व्याप्त अने उत्तुंग (उंचा) जिन प्रासादोथी युक्त. 4. जेम चंद्र कळा युक्त, सौम्ययुक्त, (शीतळ) अने सदाचार हमेशा गति करनार होय छे; तेम राजा कळा, ज्ञान, सौम्य (प्रियदर्शन) अने सारा आचारवाळो हतो. चंद्रदोषाकर-रात्रिने करनारो अने राका-पूर्णिमा तिथिमां गमन करवामां आदरवाळो होय छे पण ते राजा दोष- दुर्गुणोनो आकर-खाणरूप न हतो अने राका एटले नवीन ऋतुवाळी स्त्री, तेणीनी साथे गमन-संग करवामां आदरवाळो न हतो. 5. तेना प्रतापना भयथी ज शत्रुओ मृत्यु पामी नवा देह धारण करता हता. 6. अहिं विरोधालंकार छे. कहेवानो आशय एवो छे के, ते राजानो यश सांभळी तेना शत्रुओ काळा बनी जता अने स्वजनो पीळा-तेजस्वी बनी जता हता. ते विरोधनो एवो पण परिहार छे के, ते राजानो यश सांभळी तेना शत्रुओ चक्रधर-कुंभारना जेवा थइ जता अने स्वजनो हलधर-खेडुत जेवा बनी जता हता. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग