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________________ चरित्रारंभ सारा अने विशेष शाळ वृक्षवाळो होय अथवा सारी रीते विशाळ होय तेम ते सारी रीते विशाळ हतो. जेम वनखंड सारी शाखावाळा 'धनदवृक्षोनुं स्थानरूप होय तेम तेनी अंदर सारी रीते धन आपनारा लोकोना स्थान रूप हतो, जेम वनखंड सारी रीते संतापने हरनारो होय तेम ते सत् - पुरुषोना संतापने हरनारो हतो. जेम वनखंड 2 वज्र अने रथद्रुमनां वृक्षोथी युक्त होय तेम वज्र-हीरा, रथ अने परवालाथी युक्त हतो. धातकीना खंडथी मंडित एवा ते धातकी खंडनी अंदर बे महाविदेहक्षेत्र, बे भरतक्षेत्र, बे औरवतक्षेत्र अने बे सुमेरु पर्वतो आवेला छे. एवा ते धातकी खंडनी अंदर १२ क्षेत्रधर, पर्वतोए आश्रय करेलुं प्राग्विदेह नामनुं क्षेत्र शोभी रहेलुं छे. तेनी अंदर तीर्थंकरो अने बीजा पुरुषा पांचसो धनुष्यना देहवाळा, पूर्वकोटी आयुष्यवाळा अने अतुल बलने धारण करनारा होय छे. त्यां रहेनारा मनुष्यो, लक्ष्मीथी नवीन, प्रमदाओ उत्कृष्ट मदवाळी अने जंगम ( विहार करता ) अने अजंगम (स्थिर - निश्चळ ध्यान आसनने सेवनारा) एवा साधुओ साक्षात् साधना करनारा छे. त्यां सूत्रधारो सूत्रोने धारण करनारा, अश्वो सिंह जेवा, लुहारो बहुलोह - बहु तर्क करनारा अने मालीओ पण बुद्धिथी श्रेष्ठ छे. त्यां सेना स्वामीवाळी, स्त्रीओ संतानवाळी, पृथ्वी - भूमि रसकसवाळी, गायको गंधर्वोना जेवा अने वनो जलाशयवाळा छे. त्यां भूभृत्-पर्वतो राजाओवाळा, खाणो पण रत्नोनी खाणवाळी, अस्वारो अश्वोना समूहवाळा अने सर्व प्रकारनी कलाओ रहेली छे, त्यां कमलाकर - सरोवरो बे प्रकारे कमलाकर छे, एटले कमला-लक्ष्मीथी अने कमलोथी भरपुर छे. त्यां कमलोथी भरपुर छे. त्यां प्रिया (स्त्रीओ ) प्रिय (स्वामी) वाळी बलवंत पुरुषो क्षमा सहित अने संवरो (जळाशयो) संवर (मत्स्य) वाळा छे. ।।७८।। श्रुतकेवलीए कहेला एवा पूर्व विदेह क्षेत्रनी अंदर भरत क्षेत्रना जेवो भरत नामे एक विजय आवेलो छे. जेनी अंदर वैताढ्य पर्वते क्षेत्रनो विभाग करी तेमांथी ऊँचा प्रकारनी धान्यसंपत्तिने लइ बधा पर्वतोमां पोते राजा तरीके थवाने माटे जाणे पोतानो अभिषेक कर्यो होय, तेवुं देखाय छे जेणे विजय प्राप्त करेलो छे एवा ते भरत नामना विजयमां अमरपुरीने जीतनारी महापुरी नामे एक विख्यात नगरी छे. ते नगरीनी अंदर चोरी वगेरेना क्लेशथी रहित अने जेमना द्वार उपर प्रतिहारो रहेला छे, एवा मोटा 4 विहारो अने 'प्रतिमाओना समूहथी प्रकाशमान एवा साधुओना विहारो शोभता हता. बे प्रकारे अंग तथा उपांगने जाणनारा, 1. एक जातनां झाड. 2. एक जातनुं वृक्ष. 3. ते नामनुं वृक्ष. 4. विहार- प्रासादो अने साधुपक्षे उपाश्रयो 5. प्रतिमाओ चैत्यपक्षे ऊंचा जिनबिंबो. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग 8
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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