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चरित्रारंभ अग्नि होतो नथी अने त्यां खाणो पण नथी. तेना मध्य भागे विष्णुनी जेम अढीद्वीप आवेलो छे, जेम विष्णु सुदर्शन चक्र धरे छे, तेम ते सुदर्शन-सारां दर्शनवाळा देवताओना चक्र-समूहने धारण करनार छे. जेम विष्णु कमलालक्ष्मीना कर-हाथथी सुशोभित थयेलो छे. तेम अढीद्वीप लंबाई अने विस्तारमा पीस्ताळीश लाख योजन छे अने ते सदाकाल चारे तरफ मानुषोत्तर पर्वतथी वीटायेलो छे. ।।५।।
तेमां जेटला मनुष्य संख्याना आंक छे, तेटला 'जघन्यथी छे अने उत्कृष्टथी कोटानुकोटीना अंको छे. आ (अढी द्वीप)मा उत्कृष्टथी एकसो सित्तेर (१७०) भगवंतो थाय छे अने जघन्यथी वीस जिन भगवंतो होय छे. तथा अहींया ग्रह चारादिक होय छे. त्यां रहेला लोको अधिक हर्ष पामे छे अने कोई अशुभने प्राप्त थतुं नथी. त्यां उत्तम साधुओ सुशोभित ज्ञान रसने आपे छे, त्यां पोताना मोटा किरणने अंधकारमां पडेला जोइ सूर्य पोताना बीजा किरणोने लइ आकाशमां भमे छे अने तेनी पाछळ राजा-चंद्र अनुसरे छे. ते अढी द्वीपनी अंदर पंदर कर्मभूमि, त्रीस अकर्मभूमि अने छप्पन अंतरद्वीपो आवेला छे, तेमां त्रीस अकर्मभूमिमां कल्पवृक्षना फलनो आहार करनारा तथा अंतरद्वीपमा रहेनारा अंतरद्वीपवासी युगलीक मनुष्यो रहे छे. तेवा ते अढीद्वीपनी अंदर योगीनी जेम लाख योजनना प्रमाणवाळो प्रथम जंबूद्वीप आवेलो छे. जेम योगी योग सहित होय छे, तेम ते द्वीप अग-पर्वत सहित छे, जेम योगी पुरुषो अर्ध्य-पूजवा योग्य छे, तेम ते द्वीप पण मोटा पुरुषोने पूजवा योग्य छे. जेम योगी सदा-हमेशालय एटले ध्यानवाळो होय छे, तेम ते द्वीप सत्-सारा आलय-स्थानवाळो छे. ते द्वीपनी अंदर छ अकर्मभूमि अने त्रण कर्मभूमिओ रहेली छे. अने जंबु-जांबु वृक्षना नाम उपरथी तेनुं नाम जंबूद्वीप पडेलुं छे, तेनी अंदर सात वर्षो, (क्षेत्र) छ वर्षधर पर्वतो, आडत्रीस वैताढ्य पर्वतो अने चौद महा नदीओ आवेली छे. तेना मध्य भागे दश हजार योजन विस्तारवाळो अने एक लाख योजन उंचो सुवर्णना वर्णवाळो मेरु पर्वत आवेलो छे. तेनी आसपास लाख योजन विस्तारवाळो लवण समुद्र वीटाइने 1. जघन्य अंक (आ अंक पांचमो वर्ग छे) आ मुजब कह्यो छे. (१८४४६७४४०७२७०९५५१६१६) उत्कृष्ट मनुष्योनो अंक पण नीचे जव दर्शाववामां आवेलो छे. (७९२२८१६२५१४२६४३२७५९३५४३९५०३३६) ( अटीद्वीपना नकशामां पृष्ट १३४ अने पृष्ठ १३२) आटली बधी मनुष्य संख्यानो अढीीपमा समावेश शी रीते थाय तेनुं समाधान करवानी इच्छावाळाए अीद्वीपना नकशानी बुकमां पाने १३५ जोई जवं. 2. पुरुष करतां स्त्रीनी संख्या २७ गणी वधारे दावी छे. स्त्री योनिमां उत्कृष्ट १ लाख गर्भजमनुष्यनी उत्पति थाय छे ईत्यादि.
श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग