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________________ चरित्रारंभ चरित्रारंभ श्री शाण नामना गृहस्थे श्री रत्नसिंहसूरिना उत्तम उपदेशथी रैवत गिरि (गिरनारपर्वत) उपर एक जिनालय कराव्युं हतुं. जेने सेवन करवाने समये जे नवीन सुवर्णनी कायानो आश्रय करे छे, (तो पण) विद्वान् पुरुषो जेने खरेखर विश्वरूप कहे छे, जेनी अंदर सुर, असुर तथा मनुष्योने पूजवा योग्य अने सुवर्णना जेवी कांतिवाळा श्री विमलनाथ स्वामी प्रभुताने आश्रित थई जय पामे छे, जेमां श्री अजितस्वामीए श्री मंडपमांथी आवी पोताना आत्माने सुवर्णरूप बनावी (निहाळी) सुवर्णमय शरीरने धारण कयुं हतुं. जेना द्वार उपर चंद्रनी कांतिने जीतनारा श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ अने चिंतामणि गणधर बंने कायोत्सर्ग धारण करीने रह्या छे, ज्या संसारनो भय राखनारा प्राणीओने शरणरूप अने सर्व प्रकारनी लक्ष्मीओनुं स्थान रूप एवें पवित्र कांतिवाळु समवसरण स्फूरायमान थइ शोभी रह्यं छे. जेनी अंदर बधुं समवसरण समाई जवानी वात तो शी करवी? पण जेनी मध्ये समस्त सौंदर्यवाळी पृथ्वी पण रहेली छे अने जेनी अंदर बीजी सुवर्णवर्णी प्रतिमाओ होवाथी विद्वानोए जेनु कांचनबलानक एवं नाम आपेलुं छे, तेवा ते सर्व जिन प्रासादोने जीतनारा उत्तम प्रासादने प्राप्त करी कया पुरुषो संपूर्ण प्रसन्नताने भजता के उत्पन्न करता नथी? तेवा ते प्रासादनी अंदर मूलनायकपणाने प्राप्त थयेला तेरमा तीर्थंकर श्रीविमलप्रभुनु चरित्र कहुं छु. ।।४४।। तिर्यग्लोकनी मध्य भागे साधुनी जेम मेरु पर्वत शोभी रह्यो छे. साधु जेम वृत्तपेशल एटले सद्वर्त्तनथी कोमळ होय छे, तेम ते वृत्त-गोळाकार तथा कोमळ छे. साधु जेम पुण्य-आचार पाळवामां तत्पर होय छे, तेम ते पुण्यना आचरण करनाराने प्राप्त थाय तेवो छे, अथवा ते पुण्यना आचारथी प्रधान छे. जेम साधु हमेशां क्षमाधर-क्षमाने धारण करनार होय छे, तेम ते शाश्वत क्षमापृथ्वीने धारण करनार पर्वत छे. असंख्य बुद्धिमान् विद्वानो जे कहे छे के, ते पर्वतने आश्रयीने असंख्य द्वीप समुद्रो रहेला छे. ते मोटा आश्वर्यनी वात छे. तेओनी 'अंदर मनुष्योनी उत्पत्ति अने विनाश (जन्म मरण) थती नथी. कारण के अढीद्वीप सिवाय बीजे अरिहंतोनुं गमन नथी थतुं. त्यां ग्रहोनो चार (परिभ्रमण) पर्वतो अने नदीओ नथी, त्यां मेघ वृष्टि थती नथी, धान्य उगतां नथी, बादर1. ( अढीद्वीप, समुद्र सिवायना बीजा असंत्र्यातद्वीप समुद्रोनी अंदर.) श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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