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सातमा व्रत उपर स्वर्णशेखरनी अने महेंद्रनी कथा पोताना पुत्र सहित राजाना चरणमां नम्यो. ते अवसरे स्वर्णशेखर राजाए स्वच्छ मनथी ते श्रेष्ठिने पछ्यं. हे श्रेष्ठिन! मने ओळखो छो? तेणे कर्खा आपने कोण न ओळखे! व्यवहारथी व्यवहारी एवा मने ओळखो छो अर्थात् हुं राजा छु ए प्रमाणे ओळखो छो. परंतु पोताना पुत्र स्वर्णशेखरना रूपमां नथी ओळखतांने! ते सांभळीने श्रेष्ठि पोताना महेन्द्र नामना पुत्रनी साथे आश्चर्य पाम्यो. तो पण शंकीत मनवाळो थईने मौन धरीने उभो रह्यो. भाग्यथी प्रधान एवा ते स्वर्णशेखरे पोताना पितानो सत्कार करीने पोतानो सर्व वृत्तांत कह्यो. अने पोताना भाईने प्रधान अने श्रेष्ठिपद पर पोताना पिताने स्थापित कर्या..
एक वखत भाईनी साथे राजा नंदन उद्यानमा रहेला धर्मघोषनामना सूरि भगवंतने वंदन करवा आव्यो. गुरु भगवंते बार व्रत पर देशना आपी अने तेमां भोगोपभोग व्रत पर विशेष विवेचन कयु. हे राजन्! आ व्रत स्वीकार करनारे प्रयत्न पूर्वक बावीश अभक्ष्य छोडवा, विवेकिओने मद्यमांसादिमहाविगईयो छोडवी. बत्रीश अनंतकाय कंदमूळादि छोडवा, जंतु युक्त फल, पत्र, पुष्प, धान्य छोडवा. पंडितोए पापर्नु मूळ जेमां छे एवा पंदर कर्मादान खरकर्म आदि पंदर कर्मादानो छोडवा. ते सांभळी संसारमा धर्मने ज सारभूत गणीने राजाए भाईनी साथे ते व्रतने ग्रहण कयु.
वसंतऋतुना समये ते पोताना भाईनी साथे एक वखत उद्यानमां पोताना सुंदर परिवार साथे गयो. त्यां वनपालके सुंदर फळो राजानी आगळ मूक्यां. ते फळो जोईने राजाए तेओने पूछ्युं के हे भाईओ! आ फळोनुं नाम शं छे? त्यारे उद्यानपालके कह्यु के हे राजन्! आ फळोनुं नाम अमे जाणता नथी. पण अति मनोहर अपूर्व फळोने जोईने अमे लाव्यां छीए. राजाए कयुं हुं आनुं नाम अने गुण न जाणवाथी क्यारेय खावानो नथी. कारण के मारे अज्ञात फळ न खावानो नियम लीधेल छे. महेन्द्रे ते फळ रसनो अर्थि बनीने खाधा. ते विषवृक्षना फळोना कारणे क्षणभरमां मरणने प्राप्त थयो.
ते महेन्द्र मरीने व्यंतर निकायमां देव थयो. पोताना भाईने मरण पामेलो जोईने पोताना पुत्रने राज्य उपर स्थापन करीने स्वर्णशेखरे यशोधर गुरुनी पासे दीक्षा ग्रहण करी. चारित्रनुं पालन करी आयुष्य पूर्ण करीने उपरना ग्रेवैयकमां ते उत्पन्न थयो. आ प्रमाणे भोगोपभोग व्रत पालन अने अपालनथी मानवो आ संसारमा सुख दुःखने प्राप्त करनारा थाय छे. "आ प्रमाणे सातमुं व्रत कहूं."।।४५१।।
इति सप्तमंव्रतम् श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग
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