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________________ आठमा व्रत उपर वीरसेन अने पद्मसेननी कथा पीरसेन अने पद्मसेननी कथा कारण वगर जे जनो कर्मराजाथी दंडाय छे. धर्मद्रव्यनुं अपहरण करवू ते अनर्थ दंड कहेवाय छे. मद्यमदिरा जेवा रसवाळा पीवाना पदार्थो न खावा ते जाणीने ते छोडवाथी त्रीजुं गुण व्रत थाय छे. जे पुरुषो आ पृथ्वी पर अनर्थ दंडने तजे छे. तेओ वीरसेननी जेम धन्य पुरुषो पाप कर्मथी विवर्जित सर्वमान्य थाय छे अने जेओ कूटमंत्रादि वडे क्लिष्ट बुद्धिवाळा थइ खोटाविचारो वगेरेथी अनर्थदंडने सेवे छे. तेओ पद्मसेननी जेम महादुःखने पामे छे. जेम के वीरसेन अने पद्मसेनवी कथा मलय नामना नगरमां विमल नामनो राजा, वीरसेन नामनो श्रेष्ठि अने तेनी वीरमती नामनी पत्नी हती. तेनी कुक्षीथी पद्मसेन नामनो पुत्र थयो हतो. ते हुष्ट बुद्धिवाळो मंत्रतंत्रना प्रयोगमा आदरवाळो हतो. एकवखत श्रुत समुद्रना पारगामी पुण्यदायिनी तेनी वाहन शालामां श्रुतसागर सूरि रहेला हता. त्यारे वीरसेननी साथे पद्मसेन नमस्कार करीने गुरुनी सामे उचित स्थानके बेठा. ते समयमां कोई व्यंतर सूरि भगवंतनी नजरे आव्यो तेने उद्देशीने हितकारी उपदेश आचार्य भगवंते आप्यो. के हे देव! तुं निरर्थक पाप शा माटे उपार्जन करे छे. 'विबुधजनो तो जरूर होय तो पण जीवघात करता नथी अने तुं स्वार्थ सिद्धि विना जे जीवघात करे छे सारुं नथी. ते शब्दो सांभळीने वीरसेन श्रेष्ठिए पूछ्युं. आप आ उपदेश कोने आपो छो? आचार्य भगवंते कडं व्यंतरने आपु . तेणे पूछ्युं 'क्यां छे?' सूरिजीए कह्यु तारा पुत्रनी डाबी बाजु उभो छे. वीरसेने कीधुं अमने केम देखातो नथी. गुरुए कह्यु. तमारा जेवाओने ए दृष्टि पथमां न आवे. त्यारे वीरसेने पूछ्युं अहिं आणे शुं अनर्थ कर्यो छे. त्यारे गुरु एमने अर्थनो निर्णय कराववा माटे बोल्यां. विजय नामना नगरमां अरिमर्दन नामक राजा छे. तेने सिंह समान विक्रमशाळी सुबुद्धिनामनो मंत्री छे. ते मंत्रीने विजय नामनो पुत्र छे. एकदा राज सभामां कोई कृतज्ञ पूण्यशाळी निमित्तज्ञ आव्यो. राजाने आशीर्वचन दईने आसन उपर बेठो. तेनी सामे फळ मुकीने राजा तेना प्रति बोल्या. हे निमित्तज्ञ! तमे शं निमित्त जाणो छो? जो जाणता हो तो हमणां बोलो. निमित्तियाए पण कयुं हे राजन्! हुं भूत, भविष्य अने वर्तमानना बनावो जाणुं छु. राजाए कह्यु भूतकाळना 1. विबुध-देवता अने विद्वान. श्री विमलनाथ चरित्र - पंचम सर्ग 316
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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