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धर्मनो प्रभाव
ग्रंथकार महाराजनुं ग्रंथ संबंधे विवेचन
हुं (ज्ञानसागर सूरि) आ चरित्रनुं एक वचन कहेवाने पण असमर्थ छु, छतां पण जे हुं कहुं छु, तेनुं कारण मारा गुरु ज छे. ब्रह्मत्वने जाणनारा ते गुरुनी कृपाथी ज हुं आ ग्रंथ रचुं छु. आ लोकमां दुर्जन पुरुषो बाणनी जेम सर्वदा दुर्जय कहेला छे. तेओ कोइपण माणसना 'गुणारोपने जोइने रही ज शकता नथी. ते दुर्जन पुरुषो जो बीजाना दूषणोनो उद्धार करवामां (दोष काढवामां) कुशळ छे, तो तेओ बीजाना रचेला ग्रंथनी निर्मळता आपवाथी सत्पुरुषोने सद्गुण करनारा छे. जेओ सूर्यनी जेम पोते दोषाभाव (दोषा-रात्री-रजनी-अंधकार समानदोष-अवगुणनो अभाव-तिस्कार)ने करनारा छे, तेवा सत्पुरुषोने अंजलि जोडीने प्राथना करुं छु के, शुक्राचार्यनी जेम सर्वदानवसद्गुरु एटले जेम शुक्राचार्य सर्वदानवोना गुरु छे, तेम आ काव्य सर्वदा-नवीन सद्गुरु रूप बनवावाळु छे अने जेम शुक्राचार्य कृतांतजनक-सूर्यनो अंत करनार-नाश करनार छे, तेम आ काव्य कृतांत जनविद्वान् लोकोने कांत-मनोहर छे. तेवा आ काव्यना प्रत्येक पद उपर ते सज्जनोए दृष्टि आपवी. आप सज्जनोनी दृष्टिथी थयेली आ काव्यनी अधिक शुद्धिना प्रभावथी तेनामां बमणुं तेज आवशे, तेथी तेनी एटले काव्यनी अने शुक्राचार्यनी गुरु करतां । पण अधिक मान्यता थइ पडशे. धर्मनो प्रभाव
धर्मथी पांच इंद्रियोनो संयम थाय छे, लक्ष्मीनो बंधुरूप मनुष्यभव मळे छे, शुभ आपनार आर्य देश प्राप्त थाय छे, सुकृत-पुण्यनी आशाओथी व्याप्त एवं कुल प्राप्त थाय छे, षट्काय जीवनी रक्षा करे तेवी काया मळे छे, मानसरोवरना जे, गंभीर मन थाय छे, कोइनी प्रतारणा न करे तेवा वचनो बोलाय छे, दान अपाय तेवू धन मेळवाय छे. उदार हृदयवाळी स्त्री प्राप्त थाय छे, विशाळ गृहनी शालाओ मळे छे, अति श्रेष्ठ एवा वरदानो मळे छे, सत्पुरुषोने आनंद आपे तेवा पुत्रो मळे छे, उंची जातना वस्त्र प्राप्त थाय छे, जेमने अनेक देवताओ नमे तेवा देव मळे छे, तत्त्वज्ञानने जाणनारा गुरु मळे छे, सर्व भूमिने पालनार महान राजा थवाय छे, मदना सुगंधथी उन्नत एवा गजेंद्रो मळे छे, लक्ष्मीना वैभववाळा मंदिरो 1. जेम बाण गुण-धनुषनी दोरी उपर चडवाथी छूटया वगर रही शकता नथी, तेम दुर्जनो
बीजाना गुणने जोइ तेना दोष कह्या वगर रही शकता नथी. श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग