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मंगलाचरण श्रीवीरं गुण गम्भीरं धरं धीरजितामरम् ।
समीरं नीरं सन्तापे सेवे सीरं भयावनेः ।।५।। गुणोथी गंभीर, धारण शक्तिवाळा, बुद्धिवडे देवताओने रंजन करनारा, आ संसारना संतापने हरवामां पवन तथा जलरूप अने भयरूपी पृथ्वीने खेडवामां हळरूप एटले अभय करनारा एवा श्री महावीर प्रभुने हुँ सेवं छु. ५
__ केवलज्ञानविभवः समहाः सगुणालयः ।
विमलो ददतां हर्ष तीर्थराजस्तथा परे ।।६।। केवलज्ञानना वैभववाळा, तेजस्वी अने सद्गुणोना स्थानरूप, एवा श्रीविमलनाथ प्रभु अने बीजा तीर्थंकरो मने हर्ष आपो. ६ ।
श्रीपुण्डरीकप्रमुखाः प्रमुखा गणधारिणाम् ।
यच्छन्तु पुण्डरीकाद्रिपुण्डरीकोपमां मम ।।७।। सर्व गणधरोमां प्रमुख एवा पुंडरीक वगेरे गणधरो मने पुंडरीक-गिरिना पुंडरीकनी उपमा आपो. एटले पुंडरीकगिरि उपर जेम पुंडरीक गणधर मोक्ष गामी थया, तेम मने मोक्षगामी बनावो. ७
श्रीगौतमं गणधरं शिवानन्दं जनार्चितम् ।
नौम्यहं भावतः सर्व मङ्गलानन्ददायकम् ।।८।। कल्याणना आनंद स्वरूप, लोकोए पूजेला अने सर्व मंगळना आनंदने आपनारा एवा श्री गौतम गणधरने हुं भावथी नमस्कार करुं छु. ८
सरस्वतीमहं स्तौमि बहुधाऽन्योपकारिणीम्।
घनागमप्रदां नित्यं वर्षेवामृतवर्षिर्णीम् ।।९।। हुं वर्षाऋतुना जेवी सरस्वती देवीनी स्तुति करुं छु. जेम वर्षाऋतु बहु धान्यने उपकार करनारी छे, तेम जे सरस्वती देवी बहुधा बहु प्रकारे अन्य जननो उपकार करनारी छे जेम वर्षाऋतु घनागम-मेघना आगमनने आपनारी छे, तेम सरस्वती देवी घन-घणां आगम शास्त्रोने आपनारी छे अने जेम वर्षाऋतु नित्य अमृत-जलने वर्षावनारी छे, तेम जे सरस्वती देवी वाणी रूपी अमृतने वर्षावनारी छे. ९
ज्ञानदीपाश्च सूरीन्द्रा : प्रसन्ना मे भवन्तु ते ।
यत्तेजसेह लक्ष्यन्ते गहनागमकूपकाः ।।१०।। जेओना तेजथी गहन एवा आगमरूप कूवाओ जोइ शकाय छे, एवा ते ज्ञानना दीपकरूपी सूरिवरो मने प्रसन्न थाओ. १०1 1. अहिं सरस्वतीनी स्तुति पछी गुरुनी स्तुति एज वातने सिद्ध करे छे के सरस्वती एटले जिनवाणी. देवलोकनी देवीनी स्तुति सृरिवरोनी पूर्वे होई शके ज नहीं. - संपादक
श्री विमलनाथ चरित्र - प्रथम सर्ग