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स्वयंभू वासुदेवनुं चरित्र होय तेने बतावq नहि. सिंह पोतार्नु पराक्रम मृग उपर बतावे छे, पण ते अष्टापद उपर बतावतो नथी. लोकोना आधाररूप एवो मेघ चडी आवतां तेनी सामे पोता पराक्रम बतावनारो अष्टापद प्राणी तेवी दुर्बुद्धिथी मृत्यु ज पामे छे. हाथीनी साथे पोताना शरीरनुं माप करनारा सिंहनी जेम जे पुरुष अल्पवीर्यवाळो थई वीर्यवडे अधिक माननी इच्छा राखतो होय तेने अटकाववो जोईए, तेथी हुं प्रथम त्यां जईने तेमना चित्तनी परीक्षा करी लावं, ते पछी आपने आदर पूर्वक जे योग्य लागे, ते कार्य करवू; कदि तेणे अज्ञानने लईने अथवा क्रीडाने लईने तमारी भेट लीधी हशे, तो हुं तेथी बमणी भेट पाछी लावी शकीश. जो कदि गोळ आपवाथी मरण पामतो होय, तो तेने विष आपी शा माटे मारवो? शास्त्र पण कहे छे के, "युद्धनी गति विषम छे" कोईवार एक ठीकरीथी पण घडो भांगी जाय छे. राहु केवळ मस्तक रूप छे, छतां सूर्य अने चंद्रनो ग्रास करे छे. कां छे के, 1"जे माणस पोता सामर्थ्य जाण्या वगर शत्रुनी साथे वेर बांधे छे, ते एक टीटोड़ा पक्षीथी समुद्रनी जेम पराभवने पामे छे; तेथी हे राजेंद्र! ए बंने राजाओ कांईक पराक्रमी छे; एम लोकोमा संभळाय छे, परंतु ज्यां सुधी हुं मारी दृष्टिए जोउं नहीं, त्यां सुधी मने प्रतीति आवे नहि माटे आप हृदयमां धीरज राखो अने मने आज्ञा आपो; "विमृश्य कार्यकरणं, शरणं सर्वसम्पदाम्" विचारीने करेलु कार्य सर्व संपत्तिओनुं शरण रूप बने छे." आवां वचन सांभळी मेरके पोताना तेज मुख्य मंत्रीने रुद्रराजानुं बधुं बळ जाणवाने द्वारिका नगरीमां मोकल्यो. तत्त्वोनो साररूप अने गुणोनो आधार रूप ते आदेश गुरुनी जेम प्राप्त करी मंत्री द्वारिका नगरीमां गयो. त्यां प्रतिहारे प्रवेश करावेलो ते मंत्री भद्र अने स्वयंभू साथे रहेला रुद्र राजाने नमी योग्य स्थाने बेठो. पछी राजाना पछवाथी ते आ प्रमाणे बोल्यो, "राजन्, राजा शशिसौम्ये हित रूप भेट मोकली छे. बहारना भयने लईने तेने मध्ये लाववामां आवी तेटलुं सारं कयु, परंतु हाल अर्धचक्री मेरक राज्य करे छे, तेथी जो कोई अन्याय करे, तो ते अन्यायने सहन करी शके तेम नथी, कदि कोई पोताना घरमां रही अन्याय करे, तेथी शुं थ? आ पृथ्वी उपर श्वान पण पोताना घरमां बलवान् थाय छे, परंतु तेना गृहस्थानमां हरिणोने कोई दाखल करे अने कदि ते पाछो पोतानी माताना उदरमा प्रवेशी जाय तो त्यां पण ते रही शकवानो नथी, कारण के मेरकना नामथी गर्भिणी स्त्रीओना गर्भ पण गळी जाय छे, तेनी पासे वेगवाळु हरिण पण नासीने जई शके तेम नथी. तेना 1. शत्रोः सामर्थ्यमज्ञात्वा, वैरमारभतेऽत्रयः, स पराभवमाप्नोति, समुद्रष्टिटिटादिव ॥१४०।। श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
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