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स्वयंभू वासुदेव चरित्र व्यापारमां थयेलो आ चक्रवर्तीओनो दंड पण शोभाने आपनारो थाय छे, तो पछी आपणे पोते ज राजापणुं अने चक्रवर्तीपणुं ग्रहण करी लईए. आवा आवी पडेला आ दंडनो त्याग शी रीते करी शकाशे?" मंत्रिपुत्रनां आ वचनो सांभळतां ज तरत ते बंने भद्र अने स्वयंभूए पोताना उग्र सुभटोने आ प्रमाणे आज्ञा करी के, "आ सैन्यमां जेटलुं होय, ते बधुं बळात्कारे लई ल्यो." तेमनी प्रेरणाथी निरोध वगरना ते योद्धाओ क्रोध लावी विविध प्रकारना हथियारो लई एवा छूट्या के तेओए सामे युद्ध करवा आवेला सुभटोने बांधी लीधा अने हर्षथी ते सैन्यनुं सर्वस्व खेंची लीधुं. तेओमांथी केटलाएक मुख्य पुरुषो जीव लईने नासी गया अने तेमणे आवीने मेरक प्रतिवासुदेवनी आगळ ते वृत्तांत जाहेर कर्यो. ते सांभळी प्रतिवासुदेव मेरक क्रोधातुर बनी पोताना ताबाना राजाओने आ प्रमाणे कहेवा लाग्यो, "अरे राजाओ, आजे सुता सिंहने बळात्कारे कोणे जगाड्यो? अथवा आ सुतेला सर्पना मुखमां कोणे लाकडी नाखी? अने निरांते बेठेला वाघनी पासे जई 'हे वत्स! एम कोणे कडं? जे पुरुषे स्थानमा रहेला एवा मने सुखे भेट धरवानी आ योजना करी छे; ते पुरुषे पोतानुं सर्व अहित ज कयुं छे, जेम कीडीओने पांखो आवे ते तेमना मृत्युनुं कारण थाय छे, तेवी ज रीते मारो दंड ग्रहण करवा माटे ते पुरुष, आ पराक्रम बन्युं छे." प्रतिवासुदेव मेरकनां आवां वचनो सांभळी मंत्री बोल्यो, "महाराजा, एवो तो कोई बुद्धिनो भंडार रुद्र राजा जाग्यो छे. 'द्विजिह्व पुरुषोथी युक्त एवो ते रुद्र क्यां? अने बुधजनोथी युक्त एवा तमे क्यां? ते रुद्रने बे पुत्रो छे अने तमारे अनेक विवेकी पुत्रो छे. ए रुद्र पितृगृहमां स्थायी रहेनारो छे अने तमारो वास सर्व स्थळे छे. ते रुद्र विषादी छे अने तमे प्रमोदी छो. ते रुद्र हर छे अने तमो रमाकर छो अने ते रुद्र तपस्वी छे अने तमे नरेश छो, तेथी तमारा बंनेनी तुल्यता थई शकती नथी. जो पराक्रम बतावq होय तो जे पोतानो समोवड होय तेने बतावq पण जे पोतानाथी अधिक 1. द्विजिह्न एटले सर्पो, पक्षे बोल्युं फेरवनारा दुर्जनो. रुद्र-महादेव सर्पोथी युक्त होय छे, पक्षे रुद्रराजा दुर्जनोथी युक्त छे. 2. अहिं रुद्रनो बीजो अर्थ महादेव लागु पाडयो छे. रुद्रमहादेवने गणेश अने कार्तिकेय नामे बे पुत्रो छे. रुद्रराजाने पण बे पुत्रो छे. रुद्र-महादेव पितृगृह-स्मशानमा स्थायी रहेनारो छे. रुद्रराजा पोताना पिताना गृहमां-राज्यमां स्थायी रहेनारो छे अने तमारो वास सर्व स्थळे छे एटले तमे मोटा राज्यना भागमां व्यापी रह्या छो. रुद्र-महादेव विषादी-विषने भक्षण करनार छे, रुद्रराजा विषादी-खेदातुर रहेनार छे अने तमे प्रमोदी-हर्षवाळा छो. रुद्र-महादेव हर-हरण करनार छे अने तमे रमाकर रमालक्ष्मीना-आकर-खाणरूप छो अथवा रमा छे कर-हाथमां जेने तेवा छो.
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग'
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