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________________ वासुदेव चरित्र-लोभाकर अने लोभानंदीनी कथा मार्ग कह्यो, ते बाह्यमार्ग जाणवो. तेथी हुं कर्म मार्गने छोडी कर्म रहित एवा मार्गे चालनारो छू." ॥८००।। अर्हद्दत्त बोल्यो-"जेमां खावान, स्वाद लेवानं, पान करवा अने स्त्रीओ होय नहीं, तेवा मोक्ष मारे काम नथी." पुत्रनां आवा वचन सांभळी वरुण शेठे विचार्यु के, "आ पुत्र खरेखरो नास्तिक बनी गयो छे. आवा दुष्टनी साथे संग करवो, ते कदिपण प्रशंसनीय नथी." आq चित्तमां लांबो काळ विचारी वरुण शेठे तेने पण घरमांथी जुदो कर्यो. "कुमानुषेण संसर्गः, सर्वत्र परिवर्जितः" नठारा माणसनो संग सर्वथा वर्जित छे. पछी निरंकुश थयेलो अर्हद्दत्त मत्त बनेला हाथीनी जेम शहेरमां मदोन्मत्त थई भटकवा लाग्यो अने दुष्ट हृदयनो बनी द्रव्य उडावा लाग्यो. हवे चोथो पुत्र जे नंद हतो, तेने पोताना बंधु लक्ष्मीधर वगेरेनी साथे संग करतो देखी वरुण शेठे तेने मधुर शब्दोथी आ प्रमाणे कडं, "हे वत्स, लक्ष्मीधर वगेरे जे पुत्रो गुण वगरना अने सत्कर्म करवाथी रहित एवी बुद्धिवाळा थया, तेथी में तेमने दूर कर्या छे तो तुं तेमनो संग करे छे अने तेमने त्यां जवा आववा राखे छे, ते सारा माणसोने निंदवा योग्य होवाथी खोटुं छे, माटे तुं तेमनो संग छोडी दे. आ पृथ्वी उपर दोष अने गुण संसर्गने लईने थाय छे अने ते उपर पर्वत, शंकु, पुष्प अने पोपट पक्षीना दृष्टांतो प्रसिद्ध छे." पितानां आवा वचन सांभळी नंदे जवाब आप्यो. “पिता, आ संसारमा गुण अने अवगुण संसर्गथी थता नथी, सर्पनी दाढमां झेर रहे छे अने तेनी ज फणा उपर मणि रहे छे. तेमां मणिना गुण विषमां आवता नथी विषना दोष मणिमां आवता नथी; ते उपरथी सिद्ध थाय छे के गुण अने अवगुण संसर्गथी थता नथी." वरुण शेठ बोल्यो-"अरे पुत्र, द्रव्यो बे प्रकारना छे, भावुक अने अभावुक. तेमां केटलाएक द्रव्यो 'भावुक होय छे अने केटलाएक अभावुक होय छे. तेमां जे वैडूर्य मणि छे ते परद्रव्योथी अभावुक छे, एटले ते सर्पना मणिने विषनो दोष संसर्गथी लागतो नथी, परंतु जो ते सर्पनी दाढने मणिनो योग थाय तो उलटी ते दाढ विषरहित थई जाय छे. पण तेवो योग थवो दुर्लभ छे. तेमां जे जीवद्रव्य छे ते भावुक छे. तेथी तेनामां बीजाना गुण अने अवगुण संसर्गथी आवे छे, तेथी ज्यारे तने कहेवू पडे छे. वळी पुष्पादिकमां प्रायः जेवी सुगंध होय तेवी ज सुगंध तिल संबंधी तेलमां संक्रांत थाय छे, पण एक तुंबी बीज सो भार गुडनो प्रगट विनाश करे छे. 1. भावुक एटले जेने बीजा द्रव्योनी असर लागे तेवा अने अभावुक एटले तेथी उलटा समजवा. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 269
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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