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वासुदेव चरित्र-लोभाकर अने लोभानंदीनी कथा रहे छे तो तुं अवश्य नारकी थईश. तेमां कोई जातनो संदेह नथी. भद्रजातिनो गजेंद्र सदान अने गुरु सन्मानवाळो होय छे, ते छतां ते परस्त्रीनी विशेष आसक्तिथी बंधनना नठारा संकटमां आवी पडे छे. जे पुण्यजन पण परस्त्रीगमननी इच्छा करे छे, तेने रामानी आसक्तिने लईने उत्तमांगनो क्षय थई जाय छे, अरे! मूर्ख, तारे सुंदर गुणसमूहथी युक्त एवी पांचसो स्त्रीओ छे, तेटली स्त्रीओथी पण जो तने संतोष थतो न होय, तो पछी ए परस्त्रीओथी संतोष शी रीते थशे? तेथी स्वदारामां संतोष धारण कर अने परस्त्रीनो त्याग कर, जेथी आ संसारमा अने परलोकमां तने सुख थशे," पितानां आवां वचन सांभळी अर्हद्दत्त बोल्यो-"हे पिता, तमे भोग भोगवी लीधा छे एटले तमने हवे भोग रुचता नथी, पण अमारा जेवा युवानोने तो हजु भोगमां सुख लागे छे. अहो! एकेंद्रिय जीवो पण स्पर्श सुखनो अनुभव करे छे अने देवता पण स्पर्श सुखनो अनुभव करे छे, तो पछी मारा जेवाने तेमां शेनो दोष होय? संसारी जीवोनी तो चोतरफ एवी ज प्रवृत्ति देखाय छे अने नग्न, मुंड अने रांडेला होय तेमने कवचित् ए निवृत्ति होय छे. जे मार्गे घणा लोको गमनागमन करे, ते ज राजमार्ग कहेवाय छे. बाकीना बीजा मार्गो तो चोरमार्ग ज छे." "हे पिता, तमे धर्म करो छो तो तेनाथी तमने स्वर्गलोक मळशे, परंतु ते स्वर्गलोकमां पण देवताओने तो विषयसुख रहेलुं छे. जे प्रत्यक्ष एवा विषयसुखने छोडी परोक्ष एवा स्वर्ग सुख तरफ नजर करी राखवी ते वरसादने चडेलो देखी पोतानी पासे रहेला पाणीथी भरेला घडाने फोडी नाखवा जेवू छे. अने स्त्रीने सगर्भा देखी केड उपर रहेला बाळकने छोडी दीधा जेवू छे. तमने साठ वर्ष थया छे, तेथी तमारी बुद्धि नाश पामी लागे छे." अर्हद्दत्तनां आवा वचन सांभळी वरुण शेठ बोल्यो-"अरे वत्स, हं तने सर्व स्त्रीओनो त्याग करवायूँ कहेतो नथी, फक्त परस्त्रीने त्याग करवानुं कहुं छु. हुं जे धर्म करुं छु, ते विषयोने माटे कदिपण करतो नथी; परंतु कर्मोनो क्षय करवाने अने बोधि लाभने माटे ज धर्म करूं छु. तें कह्यु के, जे मार्गे घणा लोको गमनागमन करे छे, ते राजमार्ग कहेवाय छे, ते तारूं कहेवू सत्य छे. जे मार्गे राजाओ जाय छे, ते राजमार्ग कहेवाय छे, अने जे मार्गे थोडा लोको जाय छे, ते चोरमार्ग कहेवाय छे, ते तारुं कहेवं तद्दन असत्य छे. जे (बाह्य बंधन मुक्तिरूप) मोक्षसुखने आपनारो 1. हाथी पक्षे-भद्रजाति-सारी जातिनो, सदान-मदसहित अने गुरु-मोटुं सत्-सारं मान
प्रमाणवाळो. बीजे पक्षे सदान-दान करनार अने सदगुरुनु मान राखनार. 2. यक्षजन. 3. रामा-स्त्री अने लक्ष्मी. 4. उत्तमांग-मस्तक.
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
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