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________________ वासुदेव चरित्र-लोभाकर अने लोभानंदीनी कथा नथी; परंतु पिताए अने माताए मनुष्य जातिने घटे तेवू पुत्रो हित काळने अनसरीने करवं जोईए. नहिं तो ते पुत्रो उछेरीने मोटा शी रीते थाय? कृपाळू पुरुषो पशुओर्नु पण पालन करवामां अर्थ आपनारी अने उत्तम एवी सारवार करे छे, तो पछी पोताना बाळपुत्रनी केम न करे? परंतु ते पहेलां कह्यु के, “धर्म करवाथी पुत्रो थाय छे, तो जो ते पुत्रोनो अनादर करीए तो धर्मनो पण अनादर थाय." ए वात तद्दन असत्य छे, कारण के धर्म करवाथी तो राज्य पण मळे छे, पण जो ते राज्यमां अति आसक्ति राखवामां आवे, तो पुरुषोने नरकनी प्राप्ति थाय छे. वैदकमां पाणीने जीवन अने अमृत कर्तुं छे, पण जो ते घणुं पीवामां आवे, तो तेथी रोगनी उत्पत्ति थाय छे. वळी कां छे के, "पुत्र, भाई अने पशु वगेरे सर्वे ऋण संबंधे आवी मळे छे अने ज्यारे ऋणनो क्षय थाय छे, त्यारे तेमनो क्षय थई जाय छे. तो पछी तेमने माटे शो अफसोस करवो? आ वखते मोहराजाना कोपकुंजर नामना पुत्रे ते सुंदर पुत्रमा जरा प्रवेश करी दीधो, एटले ते सुंदर जेम तेम बोलवा लाग्यो. वरुण शेठे तेने पण घरथी जुदो कर्यो. तत्काळ निरंकुश थयेलो ते सुंदर लज्जा छोडी अने धर्मनो त्याग करी स्नेहरागवाळो थई हमेशा पोताना पुत्रनुं ज ध्यान करवा लाग्यो. __ हवे वरुण शेठनो त्रीजो पुत्र जे अर्हद्दत्त हतो, ते ज्यारे यौवन वयने प्राप्त थयो, त्यारे कामानुरागे तेना मनने आकुळव्याकुळ करी दीधुं. ते पोतानी स्त्रीने ज फक्त मानवा लाग्यो. ते पोताना पिता, माता, बंधुवर्ग, बहेन, वृद्धो अने गोत्रीओने मानतो न हतो. तेणे जगतमां अद्भुत एवं एक जुईं भवन बनाव्यु अने आसपास वाटिका अने विविध जातना चित्रोथी ते युक्त कयु. ते कपुरना पूरवाळु तांबूल अधुं चावीने फेंकी देतो अने पृथ्वी उपर यक्षकर्दमनी गार करावतो हतो, ते धूपथी धूपित करेला घरमां पुष्पनी शय्यामां सुतो अने त्यां सतत संगीत करावतो अने द्रव्य उडावतो हतो. राजा प्रमुखनी साथे स्पर्धा करे तेवो तेनो कामराग वधी पड्यो. जुदा-जुदा श्रेष्ठीओ, मंत्रीओ, सार्थपतिओ अने वेपारीओनी बीजी एटली कन्याओ परण्यो के जेमनी संख्या पांचसोनी पूरेपूरी थई हती, तो पण तेने संतोष थयो न हतो. तथापि ते मदथी युक्त थई परस्त्रीनो संग करतो हतो. आ खबर जाणी तेना पिता वरुणे तेने आ प्रमाणे कडं-"अरे! तें आ शुं मांड्युं छे? सामान्य कुळमां थयेला घणा मनुष्यो पण परस्त्रीगमनरूप दारुण कर्म कदि पण आचरता नथी, तो तुं मारा उच्च कुळमां उत्पन्न थई आ प्रमाणे परस्त्रीमां आसक्त श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 267
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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