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________________ वासुदेव चरित्र-लक्ष्मीधरादिनी कथा जीतनारा; आठ कर्मोनो क्षय करनारा अने सुर, असुर तथा मनुष्योए पूजेला भगवान् छे. आपणा गुरु पंच महाव्रत आचरनारा. नव तत्त्वोने जाणनारा अने राग, द्वेष, कषाय वगेरे दोषोना समूहने छोडी देनारा छे. आपणो धर्म जीव दया मूल, रत्नरूप बार व्रतवाळो अने दान, शील, तप अने भाव-ए भेदोथी अनेक प्रकारनो छे. "हे पुत्र! आवा देव, गुरु अने धर्मना तत्त्वो आपणा पोताना घरमां छे ते छतां तेने माटे तारे बीजे स्थळे जवू सारुं न गणाय;।।६००।। तेथी तुं स्वगृहमां रहीने ज श्री जिनेश्वर देवनी पूजा कर, साधु गुरुने वंदना कर अने दयामूल धर्मनुं पालन कर." आ वखते त्यां रहेला क्रोध कुंजरने पोताना पिता मोहराजे पूर्वे कहेलुं वचन याद आव्युं, तेणे कयुं हतुं के–तमारे परस्पर सहाय करवी, ते उपरथी क्रोध कुंजरे ते लक्ष्मीधरना शरीरमा प्रवेश कर्यो, एथी लक्ष्मीधर वधारे उश्केराई गयो, एक तो वानर, तेने वळी वींछीए करड्यो, तरत तेणे भगवंतना धर्मनी निंदा करवा मांडी अने अन्य लौकिक धर्मनी प्रशंसा करवा मांडी, ते साथे जेवा तेवा भाषणोथी पोताना पिताने गाळो देवा मांडी. ते वखते वरुण शेठे पोताना दयाळु अने निर्भय हृदयमां चिंतव्यु के "योग्यो हितोपदेशस्य, नायं दृग्रागदूषितः" 'दृष्टि रागथी दूषित थयेलो आ पुत्र हितोपदेश आपवाने लायक नथी.'' कह्यु छे के, "मुल्ने उपदेश आपवो ते तेमने शांतिने माटे थतो नथी परंतु उलटो कोपने माटे थाय छे. सर्पोने दूध पावं ते विषने वधारनारुं ज थाय छे."1 पछी वरुण शेठे ते पुत्रनी उपेक्षा करी दीधी एटले ते कृष्ण वगेरे अन्य देवोनो विशेष भक्त थयो अने जलजंतुनी जेम वधारे मर्यादा छोडवा लाग्यो. पुनः द्विधाचित्त थयेला वरुण शेठे पोताना हृदयमां आ प्रमाणे चिंतव्यु, "आ पुत्र जिन भगवान्नो अने सद्गुरुओनो निंदक छे, तेथी तेनी साथे वास करवो ते केवळ दोष साथे वास करवा जेतुं छे. जे पापना समूहवाळो होय तेनो त्याग करवो जोईए अने पुण्यमां आदरवाळो होय, तेने आदर आपवो जोईए आ पुत्र छे, छतां जो ते आपणा अतुल कुळमां रहेशे, तो तेथी धर्मनो क्षय थई जशे जेनाथी कान तुटे ते सोनू पण शा कामर्नु? सुवर्णनी छरी होय, पण शुं ते पेटमां मराय छे? ते पण पीडा कारी ज थाय छे, तेवी ज रीते आ मारो पुत्र छे, पण ते शा कामनो? पुष्प जंगलमां थाय छे, पण ते गुणवाळु होवाथी मस्तक उपर धराय छे. अने मळ पोताना शरीरमांथी थयेलो छे, पण लोको तेने बहार त्यजी दे छे, 1. उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये । पय: पानं भुजङ्गानां, केवलं विषवर्द्धन।।६०६।। 2. बे चित्त थयेला अर्थात् चिंतातुर. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 257
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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