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वासुदेव चरित्र-लक्ष्मीधरादिनी कथा जाण्यो, एटले तेने बोलावी आदरपूर्वक वरुण आ प्रमाणे तेने शिक्षा आपवा लाग्यो-"वत्स, अपूर्व क्षीरसमुद्र पासे होय, ते छतां खाडा, खारं अने डोळु पाणी केम पीवे छे? हाथमां दीपक छतां कूवामां शा माटे पडे छे? अने हाथमां रत्ननुं दर्पण छतां कांसामां मुख केम जुवे छे? जेओ श्री वीतरागने छोडी बीजा देवने नमे छे, तेओ चिंतामणिने छोडी काचना कटका खरीदे छे. जेओ निग्रंथ गुरुने छोडी बीजा गुरुओनो आश्रय करे छे, तेओ कामकुंभने छोडी गळीना घडाओ ग्रहण करे छे. जेओ क्षांति वगेरे दश प्रकारनो धर्म छोडी बीजा धर्मोने आचरे छे, तेओ कल्पवृक्षने छोडी बावळ वगेरेने सेवे छे अने जेओ उज्ज्वळ सिद्धांतने मूकी पापशास्त्रो सांभळे छे, तेओ अमृतना पानने छोडी उग्र विषने पीवे छे. हे वत्स, ए तापस वस्त्र वडे गळ्या वगरना जीववाळा जलना पूरमां स्नान करे छे अने तेनी अंदर वस्त्रो धूवे छे. ते हमेशां शौचने अर्थे सचित्त मृत्तिकाने सेवे छे अने अग्निकाय जीवनी विराधना करे छे. ते तापसना पारणाने माटे गृहस्थो आदु वगेरेना शाक अने दूधपाक वगेरे रागथी करे छे. जळ वगैरेमां त्रसजीवोनो समूह स्पष्ट देखाय छे, तो तेनो नाश करनार ते तापसमां पहेला व्रत रूपे सर्वमान्य एवो दयाधर्म क्या रह्यो? ते मिथ्यात्वनी प्ररूपणा करनार छे, तो तेनामां बीजुं अमृषानुं व्रत छ ज नहीं. तेनी पासे याचना वगर परिग्रह आवे छे अथवा केटलुं एक ते ग्रहण करे छे, तो त्रीजुं अस्तेय व्रत पण नथी. तेमने स्त्रीओना संघट्ट वगेरे करवामां शंका ज होती नथी, तो पछी तेना शासनमां चोथु ब्रह्मचर्य- शुद्ध व्रत होतुं नथी अने ते गांठे द्रव्य राखे छे, तो पांचमु अपरिग्रह व्रत पण नथी तेथी एवा तापसनी सेवा करवी नहि. उत्तम पुरुषोनी ज संगति करवी. आ जगतमां गुण अने अवगुण संगथी ज थाय छे. वळी कर्तुं छे के, जेमनो धर्म हिंसा छे, जेमनुं तीर्थ जल छे, जेमने नमवा योग्य गाय छे, जेमना गुरु गृहस्थ छे, जेमनो देव अग्नि छे अने जेमना दान पात्र कागडा छे, तेवा मिथ्यात्विओनी साथे शो परिचय राखवो? सम्यकत्वना जे शंका वगेरे पांच दूषणो छे. ते बधा दूषणोना तेना संसर्गथी सारा धर्मीओने पण लागे छे. ज्यारे सम्यकत्व स्थिर थाय, त्यारे धर्म पण स्थिरताने पामे छे. पायो मजबूत होय तो ज प्रासाद मजबूत रहे छे. मृत्युलोक स्वर्ग अने मोक्ष आपनारुं सम्यकत्व प्राप्त थयुं होय, तो आ जगतमां मनुष्योने नरक अने तिर्यंचनी गति थती नथी. जे बीजा देवो छे, ते कामसेवामां तत्पर, शस्त्रोने धरनारा चलित, नृत्य-गायन करनारा, अज्ञानी, स्त्री पुत्रवाळा अने रागी होय छे. हे वत्स! आपणा घरमा जे देव छे, ते सर्वज्ञ, सर्व दोषोने
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
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