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________________ वासुदेव चरित्र-लक्ष्मीधरादिनी कथा हतो. ते गणपतिनी जेम सिद्धिबुद्धिवडे युक्त, लोकोने लाभ करनार अने 'गुरुमोदक उपर रुचि धरनार थई सदा शोभतो हतो. ते वरुण शेठनी श्रीकांता नामनी स्त्रीने लक्ष्मीधर, सुंदर अने अर्हद्दत्त नामे त्रण पत्रो थया अने विजयाने नंद नामे एक पत्र थयो. लोकोना मननी कामनाने पूरनारा अने गुणवाळा ते चारे पुत्रो जाणे धर्मना चार रूप होय तेवा शोभता हता. . ते अरसामां अनादिभव नामे एक सनातन नगर छे तेनी अंदर अतुल बळवाळो मोह नामनो राजा राज्य करतो हतो. एक वखते ते मोहराजा सभानी अंदर दीन वदने बेठेलो जोई रागकेशरी नामना तेना पुत्रे तेने विनयथी आ प्रमाणे कडं-'हे पिताजी, प्रौढ एवा तमे ज्यारे क्रोध करो छो त्यारे बधुं विश्व चिंतातुर थई जाय छे, तेवा तमारा चित्तमां आजे जे चिंता देखाय छे, ते मने अपूर्व लागे छे. देवताओ, किंनरो अने पुरुषो तमारी आज्ञाने धरनारा छे, आ जगतमां तमारी सेवा न करे तेवो कोई पण पुरुष नथी. जेओ तमारी आज्ञाने मान्य करता नथी, ते नग्न, मुंडित अने अन्नपान वगरना थई एकाकी वनमां भम्या करे छे अने जेओ तमारा भक्तो छे, तेओ राज्यकर्ता, सुंदर महेलमा रहेनारा, अहर्निश जमनारा, स्त्रीओना समूहनी साथे रहेला. नित्य स्नान करनारा, अभिमान धरनारा, विविध वाहनोमां आदर करनारा अने भोगनो संयोग करनारा जोवामां आवे छे. तेम छतां आप पूज्य पिता हाल चिंतातुर देखाओ छो, तो तेमां जे सत्य होय ते मारी आगळ सत्वर कहो." पुत्र रागकेशरीनां आवां वचनो सांभळी मोहराजा हृदयमां घणो खुशी थई गयो. तेणे तरत प्रसन्नताथी मुखने उज्ज्वळ करी पुत्रने कह्यु"वत्स, मारुं एवं कांई कार्य नथी, के जे तारी आगळ न कहेवाय. कारण के तुं मारो विश्वने रंजन करनारो पुत्र छे. मारे माटे तें कह्यं ते सर्व रीते सत्य छे, परंतु अतुल बळवाळो अने मोटा पक्षवाळो मारो एक शत्रु छे." रागकेशरी बोल्यो, "एवो कयो शत्रु छे?" मोहराजाए कडं, 'चारित्रधर्म नामे एक मारो शत्रु छे, ते कामदेवना पराक्रमथी पण अजित छे. जेना सैन्यमा रहेली जे स्त्री एकली ज मारी सर्व सेनाने जीती ले तेवी छे. ते स्त्रीने शुं तुं भूली गयो छे? के जेथी तुं आq बोले छे. कडुं छे के, अहंकार बुद्धिने कहे छे के, तुं सुता परमानंदने जगाड नहीं. जो ते परमानंद जाग्रत थशे, तो पछी हुँ, तुं अने आ जगत एके रहेशे नहीं. 'हुं कर्मना सैन्यमां सुभट छु.' एवो अति घटाटोप राख नहीं. कारण के क्षमारूपी स्त्री तने 1. गणपति गुरुमोदक-मोटा लाडुवाळो अने शेठ गुरु तरफ मोदक-हर्ष पामनार हतो. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 253
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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