SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लक्ष्मीधरादिनी कथा कहेवामां आवी ते मनुष्यभव समजवो. जे शहेरमां तेओ वेपार करवा गयेला ते शहेर आर्यदेश समजवो. जे राजाए एक पुरुषने पकड्यो ते कर्म परिणाम अने जे व्यसनो ते पापो समजवां. जे अंधार कूवो ते नरक समजवू, ते तेना आश्रितने पीडा करनार छे. जे खोटुं बोलनारा लुच्चा लोको कह्या, ते दुर्बुद्धिवाळा मिथ्यादृष्टि समजवा. जे खोटी वस्तु ते मिथ्यात्व जाणवू, जेनाथी तिर्यंचनी गति प्राप्त थाय छे. जे त्रीजा पुरुषने लाभ थयो ते मनुष्यभव समजवो अने जे चोथा पुरुषने लाभ थयो, ते स्वर्गनी प्राप्ति जाणवी अने जे पांचमा पुरुषने चिंतामणिनी प्राप्ति थई ते मोक्षगतिनी प्राप्ति जाणवी." आ प्रमाणे आ उपनयनो लांबो काळ विचार करी तुं शुभ काम करजे. मुनिनो आ उपदेश सांभळी धनमित्रे पोतानो सर्व पूर्व वृत्तांत मुनिने कही संभळाव्यो. ते सांभळी मुनिए व्यसनोनु नठारुं परिणाम जणाव्यु. पछी धनमित्रे पुनः पूछ्युं, "हे प्रभु, मने फरीवार राज्य मळशे के नहीं?" मुनि बोल्या, "तारा पुण्यनो क्षय थयो छे, तेथी तने फरीवार राज्य मळशे नहीं." ते सांभळी तेणे कह्यु के, "त्यारे मने दीक्षा आपो, के जेथी आ संसारमा मारो मनुष्यभव वृथा न थाय." पछी मुनिए तेने दीक्षा आपी अने आ प्रमाणे शिक्षा आपी-“हे वत्स, तें आ संसारमां दुर्लभ एवं चारित्र स्वीकार्यु छे, तेथी जो तुं हवे आ अवस्थामां रागद्वेष करीश, तो लक्ष्मीधर वगेरेनी जेम आ संसारसागरने तरी शकीश नहीं." पछी मुनिराजे ते कथा कहेवा मांडी. लक्ष्मीधर वगेरेनी कथा 'विध्यगिरिनी जेम गुणवाळु, गज-हाथीओथी भरपूर, अनेक मुनिओथी युक्त अने निशाचरोथी रहित विंध्यपुर नामे मोटु नगर छे. ते नगरमां वरुणना जेवो प्रचेता, रत्नाकर-स्थानवाळो वरुण नामे एक शेठ रहेतो हतो, छतां ते पृथ्वीमां जलपति न हतो. तेने श्रीकांता अने विजया नामे बे स्त्रीओ हती. ते बंने जैनधर्ममां तत्पर अने पापकर्मथी विरत हती. रति प्रीतिरूप ते बंने स्त्रीओनी साथे रहेलो अने रुचिर अंग विवर्जित छतां शिवाकांक्षी ते प्रद्युम्ननी जेम शोभतो 1. विंध्यगिरि पण हाथीओ, मुनिओ अने गुणोथी युक्त अने निशाचरोथी रहित होय छे. 2. वरुणर्नु नाम प्रचेता छे. श्रावक वरुण पक्षे प्रचेता एटले उत्कृष्ट चित्तवाळो वरुण जलनो देव छे तेी ते रत्नाकर समुद्रमा रहेनार छे अने वरुण श्रावक रत्नाकर-रत्नोना समृहवाळा स्थानमा रहेनार छे. वरुण जलनो पति छे अने आ श्रावक जल-जडनो पति न हतो. 3. शिव एटले मोक्ष. प्रद्युम्न कामदेवनो अवतार होवाथी ते पोताने बाळनार शिवनी आकांक्षा न राखतो अने अनंग हतो अने वरुण शेट शिवनी इच्छा राखनार अने सुंदर अंगवाळो हतो. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 252
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy