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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनी कुमार अवस्था जरावस्था रूपी राक्षसी प्राणीओनुं मांस खाई जाय छे अने ते दुष्ट आशयवाळी जाणे मदिरा पिनारी होय तेम रुधिरनुं पान करी जाय छे. प्रथम तो ते आवतांज तरत लोकोना दांत पाडी नाखे छे, बुद्धि लई जाय छे, भय आपे छे अने ते शरणे आवेलानुं रक्षण करती नथी. ते समग्र बंधुवर्गने अवश करे छे, प्राये करीने साथे रहेली कायाने फेरवी दे छे, माणसने विकळ बनावी दे छे, नेत्रोनुं तेज हरी ले छे, मस्तक धुणावे छे अने हाथ पग वगेरे अंगोने कंपावे छे, पछी ज्यारे ते दुर्बल थाय एटले तेने विस्तार पामेला रोगो पीडे छे. दुर्बल थयेली नठारी वाडने छिद्र पाडवामां शी वार लागे? पछी ते रोगो घातकी चोरनी पेठे भारे वैर लावीने प्राणीओ चित्त सहित आयुष्य रूपी द्रव्य तत्काळ हरी ले छे. तेथी ज्यां सुधीमां सारी कांतिवाळा अने संपूर्ण इंद्रियोवाळा आ देहनी अंदर ते जरा रूपी राक्षसी नथी आवी, त्यां सुधीमां हुं आपणा पूर्वजोए करेलुं आत्महित साधी लउं." पोताना पिता कृतवर्मा राजानां आवां वचन सांभळी प्रभुए पोताना पिताने कह्यु के, "तमारुं वचन सत्य छे अने तमारे ते योग्य एवं हित करवू." राजाए पोताना न्यायी पुत्रने पुनः कह्यु, "ज्यां सुधी राज्यनो मोटो भार होय, त्यां सुधी मार्गे चालवू मुश्केल छे, तमे जिन भगवान् छो, तेथी शत्रुओने जीतो, आ . पृथ्वीनुं पालन करो अने सदा सुख सागरना मध्यमां रही लक्ष्मी युक्त थाओ. गोवर्द्धननो उद्धार करवामां समर्थ एवा तमारे विषे आ पृथ्वीने स्थापित करी । काचबानी जेम इंद्रियोने गुप्त करी हं बीजी उत्तम पृथ्वीनो आश्रय करीश." प्रभु बोल्या, "हे राजा आ लोक तथा परलोकमां सुख करनारा अने कल्याण करनारा श्रावकना बार व्रतो छे. अनर्थ दंडथी रहित, गुणसहित, शक्ति वडे युक्त अने जीव रक्षा करनारा ते व्रतोने अने उत्तर एवी ते राज्यनी धुराने धारण करो, एम करवाथी गृहस्थ धर्म सचवाशे अने सुख थशे. मारे राज्य- कांई प्रयोजन नथी. कारण के मारे पोताने निज बळ वडे आत्माने तारवो छे. हे नरेश्वर, राज्यनी अंदर अत्यंत चिंता होय छे, अने हं हमणां निश्चिंत छु, तमारे तो तेनो अभ्यास छे, तेथी तमारे माटे ते सारुं छे." ।।३३५।। राजा बोल्या हे वत्स, तमे पोते अपत्य शब्दनो अर्थ जाणो छो, छतां आ लोकमांथी मारो उद्धार केम करता नथी? श्यामाना तमने हरनारा तेजस्वी अने शूर एवा तमो छतां, मारे बीजाने राज्य दान करवू, ते हाल युक्त न कहेवाय. श्रावकनो आचार पाळतां अने बार व्रतो धारतां मनुष्योने सुगति थवानो संभव छे, परंत मारे ते व्रतो, कांई प्रयोजन नथी. मारु मन तो सदा सुखरूप अने सनातन एवा मोक्षमा ज रमी रहेलुं छे. जे गृहस्थ श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 241
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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