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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनी कुमार अवस्था श्रावको सिद्ध थई शके, ते लोकमां आश्चर्यकारक कहेवाय छे, हे वत्स! तमारे ज्यारे पुत्र थाय त्यारे तेने राज्य सोंपीने तमे सर्व रीते मोक्ष सुखने आपनारी दीक्षा ग्रहण करजो. पुत्रने विषे राज्यनो भार मूकी पिता दीक्षा ले एवो आपणा कुलनो धर्म पूर्वजोए सदा आचरेलो छे. हे वत्स! जो तमारे निकाचित साता वेदनीय कर्म होय, तो आ राज्य ग्रहण करो अने ते तमे पोते ज्ञानथी अवलोकन करो." पिताना आवां वचन सांभळी प्रभुए अवधिज्ञान योजीने जोयुं त्यां पोतानुं साता क्दनीय कर्म घणुं जोवामां आव्यु, एटले तेओ भावथी मौन धारण करीने रह्या. पछी राजाए स्वजन वर्ग अने राज वर्गने एकठो करी प्रभुनो उत्सव सहित पट्टाभिषेक कर्यो. प्रभु पंदर लाख वर्षो सुधी कुमार-अवस्थामा रह्या हता पछी 'तैमणे पिताना वचनथी राज्यनो भार अंगीकार कर्यो; ते काले गुरुनो योग थतां राजा कृतवर्माए पोते दीक्षा लई लीधी. तेवा पुरुषो योग्य कार्य करवामां विलंब करता ज नथी. प्रभुए जे एवा मोटा राज्यने प्राप्त करीने पण प्रजाओने करपीडा करी न हती. ते आश्चर्यकारी कहेवाय, अथवा जे सोम-चंद्र होय. ते एवो ज होय छे. जेम चंद्रनो उदय थतां, चोर वगेरे दुष्ट कर्म करी शकता नथी अने साधु पुरुषोनो वर्ग पोताने मार्गे प्रवर्ते छे, तेवी रीते सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी एवा प्रभु साम्राज्य करता कुकर्मोनी निवृत्ति अने शुभ कर्मोनी प्रवृत्ति थती हती. पूर्वे इंद्रे मोकलेला सेवाकारी देवताओ प्रभुना शत्रु वर्गनो निग्रह अने सेवक वर्गनो अनुग्रह करता हता. बीजा राजाओ पोताना मस्तक उपर ते प्रभुनी आज्ञारूपी छत्र अहोरात्र धारण करता ते युक्त हतुं, कारण के ए प्रभु सदा उदय पामनारा 'ईनस्वामी हता. नठारो व्यय करवामां कृपण अने बुद्धिमां निपुण एवा प्रधानो पोते मानेला राज्यनी चिंतामां सावधान रहेता हता. आ पृथ्वीमां सत्पुरुषो स्वभावथी सदाचार रूपी धनवाळा भले होय, पण जेओ आवा स्वयंबुद्ध वगेरे छे तेवा पुरुषो तो पृथ्वीमां कोईक ज होय छे. लोकोमां विख्यात एवा ते स्वंयबुद्धो उत्तम पुरुषो छे अने जेओ उपदेशथी विख्यात छे, तेओ मध्यम पुरुषो छे, तेवा थोडाएक साधु, श्रावक वगेरे पण खरेखर कीर्तिवाळा होय छे, बाकी बीजा जे घणा लोको तेओ पण राज्यना परम शासनथी अधर्मनो त्याग करता हता. कारण के राजानी आज्ञा घणी बळवती होय छे. ते समये केटलाएक सज्जनो घणाविशाळ एवा सुवर्णना थाळो पूरीने प्रभुनी आगळ हर्षथी धरवा लाग्या, केटलाएक वस्त्रोना समूहने केटलाएक उत्तम वर्ण-वाळाना समूहने, केटलाएक पुष्पोना 1. ईन एटले सूर्य पण थाय छे. 242 श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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