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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनी कुमार अवस्था करनारा थशे. तेमनुं 'उत्तमांग छत्राकारे छे, तेथी तेमना मस्तक उपर छत्र धराशे . तेमना केश (आवा) कोमळ श्याम अने स्निग्ध छे, तेथी तेओ वासुदेव वगेरेनी पूजा अपरिमित हृदये प्राप्त करशे. वळी आ कुमारना मौलि - मस्तकना भागमां उष्णीष - शिखा छे, एटलुं विशेष छे, तेथी तेओ आ त्रणे जगतमां 2 त्रिशृंग-त्रण शिखरथी युक्त थशे. आत्रण भुवनमां सर्वने प्रशंसनीय एवा आ कुमारनी साथे जे कंई सरखाववामां आवे, ते हीन उपमावाळं जाणवुं अर्थात् आ त्रणे भुवनमां तेमनी उपमाने योग्य कोई पण नथी. आ प्रमाणे ते जोषीना वचनो सांभळी जाणे जंगम कल्पवृक्ष होय तेवा राजाए हर्षित थईने ते जोषीने ऊंची जातनुं पारितोषिक आप्युं. प्रभु विमलकुमार साठ धनुष्य प्रमाण ऊँचा, भव्य एवा प्रथम संस्थान अने आद्य संहनन ( संघयण) वाळा थई यौवन वयने प्राप्त थया. सूर्य ग्रीष्मऋतुना आश्रयथी तेजस्वी होय छे, परंतु प्रभु तो स्वभावथी ज तेजस्वी हता. चंद्र पूर्णिमाना योगथी अमृतमय कांतिवाळो अने स्वच्छ होय छे अने प्रभु तो स्वभावथी अमृतमय कांतिवाळा अने स्वच्छ हता. आम्रवृक्ष वसंतऋतुना योगथी सारी छायावाळो होय छे अने प्रभु स्वभावथीज सारी छाया- कांतिवाळा हता. क्षेत्रभूमिनो देश शरऋतुथी शस्य - धान्यने उत्पन्न करनार होय छे अने प्रभु तो स्वभावथी ज शस्य - प्रशंसनीय कार्योने उत्पन्न करनारा हता. जगत्पति प्रभु सदाकाळ रूपनी लक्ष्मीथी युक्त तो हता, पण ते पापरहित प्रभु यौवनथी विशेष शोभाने प्राप्त थया हता. पछी ते प्रभु भोग्यकर्मना समूहने हरवाने अने पितानुं वचन मान्य करवाने बाह्यवृत्तिथी राजकन्याओनुं पाणिग्रहण कयुं. प्रभुए से विवाह मन वगर कर्यो हतो, कारण के गृहस्थोने स्वदार संतोष ए मोटुं व्रत गणाय छे. जेम कोई मोटो माणस सारा नगरमा आवे, त्यारे सर्वजनो तेने भोजन करवानुं निमंत्रण आपे छे, ते वखते ते मोटो माणस धन्यात्मा थई पोताने स्थाने जवा माटे रसगौरव विना बे ऋण घरे भोजन करे छे, तो पण ते माणसनी निंदा थती नथी; परंतु उलटी प्रशंसा थाय छे, तेवी रीते जिन भगवान्‌नो भोग पण कर्मना क्षयने माटे होय छे. एक दिवसे धर्म, अर्थ अने कामनी आराधना करवामां तत्पर अने मोक्षमार्गमां आदर करनारा कृतवर्मा राजाए भविष्यमां सुखनी इच्छाथी पोताना गुणी पुत्रने आ प्रमाणे कह्युं, "वत्स, लघुपणामां पुरुषने पतिशब्द शोभे छे, परंतु गुरुपणामां तेने ते भाररूप थाय छे अने स्वर्गलोकनो व्यय करावे छे. हे वत्स, 1. मस्तकवगेरेनो भाग. 2. त्रण अति उच्च ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप शिखरवाळा थशे. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग आ 240
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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