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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनी कुमार अवस्था बीजाओने पण तारे छे. ते प्रभु क्षमा-पृथ्वी उपर रहेला छतां जाणे तरता होय तेम देखाय छे, ते उपरथी तेओ जणावे छे के, क्षमाथी आ संसार रूपी सागर तरी शकाय छे. पारणामां सुतेला प्रभु चंद्रना उदय तरफ पोतानी दृष्टि राखी अने अंगने लीन करी क्षणवार रहे छे, ते जाणे कायोत्सर्गे रह्या होय तेवा देखाय छे. प्रभु जे ते पदार्थ उपर एक दृष्टि राखी रहे छे, ते वखते तेओ बालपणामां पण खरेखरी सर्वज्ञनी संज्ञाने प्राप्त करे छे. वळी कोईवार प्रभु पोतानां जेवा मुक्तामय, सुवृत्त, सगुण अने सदा लयमा रहेला दडा तरफ जोई रहे छे. चरणना उंचा प्रकारना व्यापारमा ते प्रभु बद्धमुष्टि छे, छतां पण क्षमाधारीओनी अंदर चंद्रनी किरणना जेवू उज्ज्वळ यश प्राप्त करवाना छे. कोईवार 4अनाहत स्वरमां लीन थयेला अने धारणाए युक्त एवा ते प्रभु देवताना चक्रथी मंडित एवा अंतःपुरने जुवे छे. पालणामां उर्ध्व भागे रहेला प्रभुने देवतानी स्त्री दोरी लईने हींचोळे छे, त्यारे प्रभु तेणीना पासे हींचता आवे छे पण तेओ काष्टा-दिशानो आश्रय छोडता नथी अने पाछा उंचा गुण-दोरी साथे मळी पोते पाछा स्वस्थानमां आवे छे एवी रीते प्रभु जिन होवाथी परलोकने अर्थे गमनागमन करे छे. त्यां पाटियानी व्यूह रचना करी राखेला प्रौढ तारकने जोई लोको कहे छे के, "अहो! आ बालक पांजरामां पुरायेलो छे" कोईवार प्रभु अव्यक्त-न समजाय एवो शब्द करे छे, ते उपरथी तेओ लोकोने जणावे छे के, "मारुं स्वरूप आq छ अर्थात् अव्यक्त छेअज्ञेय छे." त्रण ज्ञानने धारण करनारा प्रभु 'हे! मा' एवी वाणी पण बराबर बोली शकता नहीं, तोपण हुं मार्नु के, अवसरे जेवू बोलाय ते मीठु लागे छे.।।२६५।। "देवताओ अने देवीओ प्रभुने रमाडे छे," एम कहेवू ते तद्दन मिथ्या छे, कारण के प्रभु तेओनी साथे चेष्टाथी क्रीडा करता लागे छे, पण तेओ पोते तो आत्माराममांज रमनारा छे. जे देव वगेरेने मोकलवामां आव्या छे, ते बधी इंद्रनी भक्ति छे, परंतु ते परमेष्ठी प्रभुने तो ते बधुं स्नात्र वगेरे क्रिया करवा बराबर थाय छे. प्रभु महेलनी अंदर पगे रीखता चालीने पोताना बंधुओने कहे 1. क्षमा एटले पृथ्वी अने सहनता. 2. दट्टा पक्षे मुक्तामय-मोतीए भरेलो सुवृत्त-गोळाकार, सगुण-दोरीवाळो अने सदालय-सारा स्थानमा रहेलो अने प्रभु पक्षे प्रभु मुक्त-आमयरोगथी मुक्त सुवृत्त-सारा आचरणवाळा, सगुण-गुणी अने सदा हमेशा लय-ध्यानमा रहेल. 3. क्षमाधारी-मुनिओ. 4. अनाहत-स्वर-एटले समाधि पक्षे अनाहत चक्रमाथी प्रगटतो स्वर प्रभु पक्षे चोखो अवाज धारणा-योगांग पक्षे धैर्य अंत:पुर-जना- पक्षे आंतर हृदय प्रदेश. 5. पारणे हिंचवामां उंचे नीचे जवाय रे ते उपर उत्प्रेक्षा छे. 236 श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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