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श्री विमलनाथ प्रभुनी कुमार अवस्था जाणनारा अने सद्ज्ञानमय चित्तवाळा विद्वानो तेने 'अमृत रूप कहो. हुं तो ते सर्वज्ञ प्रभुना मुखने अमृतनो कुंड कहुं छु, कारण, ते प्रभु ताप वगेरेमां आवीने उलटा ते अमृतनुं पान करे छे. जो कदि भगवान् सो वर्ष सुधी व्याख्यान करे, तो त्यां सुधी तेना श्रोताने क्षुधा तथा तृषानी पीडा दुःख लागे नहीं, तेवी ते सर्वज्ञ मुखनी वाणी तेमां प्रमाण रूप छे, ते उपरथी सिद्ध थाय छे के जो ते मुखमां अमृत न होय, तो तेवी वाणी शी रीते होई शके? बीजाओना मुखमां पण सदा अमृत रहे छे, जेना रसथी दादर वगेरे रोगोनो उपशम थाय छे, आ पृथ्वीमां पशुओनी जीभमां पण अमृत छे, तेओनी जीभ ज्यारे तेमना देह उपर लागे छे, त्यारे तेमना रोगनी शांति प्रत्यक्ष देखाय छे. वळी जिन भगवानोए लक्ष्मीना गृह रूप पोताना मुखमां अंगुठो नाखेलो ए उपरथी बाल्यवयमां बालकोनो तेवो स्वभाव अद्यपि लोकमां प्रवर्ते छे. जेमनी काया निरोगी अने पसीना-मळ वगेरेथी रहित होय छे, जेमनो श्वास सुगंधी होय छे, जेमनां रूधिर-मांस श्वेत होय छे अने जेमना आहार-निहारनो विधि (चर्म चक्षुवाळाने) समीपमां जोवामां आवतो नथी तेवा जगत्पति जिन प्रभुने ते चार अतिशयो सहभावी (जन्मथी ज) होय छे. लोकोमां कहेवत छे के, 'जे बांधी मुठी राखे तेने लाखोनो लाभ थाय छे.' ते उपरथी ज प्रभु बाल्यवयमां ते लाभ मेळववाने माटे बांधेली मुठी राखता हता. वळी ते गर्भयोगींद्र प्रभुने योगीओ अदृश्य थई पूछे छे के, 'हे प्रभु, मुक्तिनुं । सुख क्यां छे?' त्यारे प्रभु कहे छे के, "ते मुक्तिनुं सुख मारी मुठीमां छे." तेमज ते योगीओ ते सर्व हितकारी प्रभुने कहे छे, "त्यारे ते मुक्तिनुं सुख अमोने आपो." त्यारे प्रभु बालस्वभावने लईने तेमने अंगुठो बतावे छे, पछी तेओ रोष लावीने बलात्कारे प्रभुना अंगुठाने कदि चोळी नाखे, तेथी प्रभु ते अंगुठो वारंवार पोताना मुखमां नाखे छे. अथवा मोहरूपी मल्ल जे आ त्रण जगतने दुःखी करी रह्यो छे. तेने जोई प्रभु मुष्टि अने लातथी तेने मारवा धसे छे. कारण के पोते जिन भगवान् छे. ज्यारे प्रभुना हाथ पग ते मोहरूपी मल्लनी साथे युद्ध करवाथी श्रात थई जाय छे. त्यारे प्रभु पोताना मुखरूपी अमृतना कुंडमांथी तेमने अमृतनुं पान करावे छे. ज्यारे त्रण जगतना प्रभु मोह उपर जय मेळवे छे, त्यारे तेओ हर्षित थईने हाथ ताळी आपे छे. मोह क्षयना भयथी व्यग्र थयेला माता पिता वगेरे प्रभुने नीचे उतारे छे, त्यारे जाणे ते सुखथी तरी जतां होय तेम देखाय छे. पोतानी मेळे तरता कलशने कोई अधोमुख करे छे, त्यारे ते प्रभु विशेष पणे 1. ठल्लो. 2. अमृतरूप-मोक्षरूप. 3. संसारना ताप वगेरेमां आवीने एटले संसारी बनीने. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
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