SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री विमलनाथ प्रभुनो जन्म महोत्सव मेघ वृष्टिवडे ग्रीष्मऋतुनो प्रसरलो ताप शमी गयो. 'घन रसवाळा घनमेघने घणा जनोने तृप्त करतो जोई दानरहित एवो सूर्य शांत थई गयो. श्रीजिनप्रभुने निष्पाप जाणी अने पोताने अगस्तमुनिए अंजलिमां पीवाएलो जाणी समुद्र जलना गर्वथी उत्पन्न थयेली पोतानी ऊल्लोलता छोडी दीधी. ते समये श्यामादेवीना सीमंतनुं काम करवाने शरदऋतु हंसक सहित शुकपक्षीनी पंक्तिनी सुंदर तोरणमाळाने लई हर्षथी सत्वर त्यां आवी पहोंची. जिनमातानो ते भव्य अने नवीन सीमंतोत्सव थतां अग्निए पण पोतानी श्यामता हर्षथी छोडी दीधी. सर्वज्ञ प्रभु गर्भमां आवतां पृथ्वी उपर 4पंकनो नाश थई गयो. 'दुर्दिननो प्रलय थई गयो अने हिंसविचार पण थवा लाग्यो; ते समये श्री सर्व हितकारी प्रभुना प्रसादथी सर्व पृथ्वी खीली रही, 'ऋषिगणनो उदय थयो अने धान्य हजारगणुं उत्पन्न थयु. अगार घर वगरना अनगार-मुनिओनो पण विहार हेमंतऋतुमां थाय छे, तो देहना गर्भरूपी घरमा रहेला प्रभुना ते विहारनी सिद्धि केम न थाय? सूर्य पण पर्वणीने दिवसे पोताने तमथी ग्रसेलो जोईने अने श्री जिन प्रभुने सदा तमने हणनारा जोईने ते काले मंदतेजवाळो बनी गयो. ए समये अनेक क्षेत्रो दृष्टिनी पुष्टिने करनारा थया तो सर्वज्ञ प्रभुना ए जन्म प्रसंगे तेमनुं पोषण थाय, एमां शुं कहेवू? "अमारा समयमा प्रभुनुं गर्भाधान थयु, जन्मस्नात्र अने महोत्सव थयो अने प्रभुनी माता अमारा नामनी साथे मळता छे." आवं विचारी रात्रिओए प्रौढता धारण करी. अहो थोडा सुखमां पण प्रमदाओनी वृद्धि थाय ए संभवित छे. ते समये 1 जडा(ला)शयो पण प्रभुने लईने 1नीचो मार्ग छोडी बरफ रूप बनी पृथ्वीमां स्थिर थई गया. ते काले जडता थया छतां पण जीवोने 1. मेघ घन घणो अथवा घाटा रसवाळो छे. अने जलनुं दान करी घणा प्राणीओने तृप्त करनारो छे. एवं जोई दानगुण वगरनो सूर्य शांत थई गयो. दाताने देखी अदाता शांत थई जाय छे. 2. उल्लोलता-चपलता उछांछळापणुं, पक्षे ऊंचा मोजाने उछाळवापणुं. 3. अर्थात् अग्नि उज्ज्वळताथी ज्वलित थवा लाग्यो. 4. पंक कादव, पक्षे पाप. 5. दुर्दिन वादळाथी छवायेलो दिवस, पक्षे नठारो दिवस ते शभ निर्मल बनी गयो. 6. हंस विचारहंसपक्षीनो संचार शरदऋतमां हंस पक्षीओ पाछा प्रगट थाय छे पक्षे हंस-आत्मानो जीवनो विचार. 7. ऋषिगण मुनिगण, पक्षे तारागण. 8. सूर्य पर्वणी-अमावास्याने तम-राहुथी ग्रसेलो थाय छे. अर्थात् सूर्य ग्रहण वखते तेम बने छे अने प्रभु तो सदा तम-अज्ञान अंधकारने हणनारा छे. ते जोई सूर्य मंद पी गयो. हेमंतऋतुमां सूर्यन तेज मंद थाय छे. 9. अर्थात् हेमंतमां रात्रिओ मोटी थई. रात्रिनुं नाम पण श्यामा छे, तेथी ते श्यामादेवीने मळता नामवाळी छे. 10. जडाशय-जड-आशय हृदयवाळा मनुध्यो ए अर्थ बीजे पक्षे लेवो. 11. नीचो मार्ग जलाशय पक्षे नीचे मार्गे जq ते अने बीजे पक्षे नीचे रस्ते चालवं ते. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 226
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy