________________
.. श्री विमलनाथ प्रभुनो जन्म महोत्सव छे. अने एक स्वप्न जोवामां आवे तो राजा थाय छे." तेमना आ वचनो सांभळी राजा परिवार साथे संतुष्ट थयो. तेणे शरीरमां रोमांच रूप कवच धारण कयुं अने हर्षाश्रुना भारथी ते प्रकाशमान थई रह्यो. पछी वस्त्र वगेरेना शिरपावथी संतोष पमाडी ते स्वप्नवाचकोने तेमने घेर मोकल्यां अने पछी तेणे महाराणीने ते सर्व वृत्तांत जणाव्यो, तेथी तेणीना हृदयमां निश्चय थयो. पछी हर्षथी पुष्ट थयेली श्यामादेवीए बे हाथ जोडी राजाने कडं. "स्वामी, कल्याणना विस्तारने करनार मारे तीर्थंकर पुत्र ज थाओ." संतानना वाक्यनी संततिथी सुखमां निमग्र रहेनारा अने अधिक अधिक हर्षने धारण करनारा ते बंने दंपतीना दिवसो वेगथी पसार थवा लाग्या. ।।७२।। ते गर्भना प्रभावथी राजाना नगरमां, अंतःपुरमा अने स्वदेशमां अने परदेशमा आधि, व्याधि के पीडानी वात रही ज नहिं. ते समये इंद्रनी आज्ञाथी पवित्र कार्य करनारा उत्तम वायुकुमार देवताओ हर्षथी श्यामादेवीना महेलना आंगणाने साफसुफ करवा लाग्या, मेघकुमार देवताओ सुगंधी जलथी सिंचन करवा लाग्या, छ ऋतुओनी देवीओ सुकर कुसुमना समूहनी वृष्टि करवा लागी. व्यंतरदेवीओ तेमना शरीरनी शुश्रूषा करवा लागी अने ज्योतिष्कदेवीओ श्यामादेवीने रत्नमय दर्पण देखाडवा लागी. ज्यारे जिनराज प्रभु श्यामादेवीना उदरे अवतर्या, त्यारे सर्व लोकोने राजापणुं प्रगट थई आव्युं अने ऋतुराज वसंत प्रसरवा लाग्यो, प्रभु भूलोकमां आवतां सर्व वृक्षो योग्यता प्रमाणे खीली मनुष्योने पत्रो, पुष्पो अने फुलो आपवा लाग्यां, समुद्र जिनप्रभुनु सामीप्य प्राप्त कर्या छतां पण ग्रीष्मऋतु आवतां राजप्रसाद मेळवी वेळा मर्यादा मूकवा लाग्यां, परंतु श्यामादेवी एवामा छतां पण धर्म कर्म करवामां मर्यादा छोडी नहीं, परंतु उलटी तेणीने ते उपर (विशेष) श्रद्धा थई. बहारना प्रगट जिन भगवान् अने अंदरगर्भगत जिन भगवान्नी अंदर महत् अंतर होय छे. कारण के सामान्य केवळी अने जिनेश्वर भगवान् ए बे वच्चे अतिशय वडे मोठं अंतर तफावत होय छे. अषाढ मास अर्धा जतां त्रीजे मासे श्यामादेवीने जगत पूजित एवो सुकृतनो दोहद उत्पन्न थई आव्यो. ते उपरथी आजे पण स्त्रीओमां घणी धर्मश्रद्धा जोवामां आवे छे. जेमां महाजन प्रवर्ते ते मार्ग कहेवाय छे जेम जिनदृष्टि वडे उत्तम श्रावकोनों अने अंतरदृष्टिवडे सत्पुरुषोनो प्रसरेलो ताप शमी जाय छे. तेम वर्षाऋतु आवतां 1. राजप्रसाद एटले राजा रूप प्रभुनो प्रसाद पक्षे चंद्रनो प्रसाद. 2. वामा एटले वक्रपक्षे वामा-सुंदरी विरोधाभास.
श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग
225