SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री विमलनाथ प्रभु, च्यवन तथा जन्म देवदेवीओनी साथे गीत तथा नृत्यनो विनोद करता क्रीडा वापी (वापी)मां गया. ते वापिकामां स्नान करी पोताना स्थानमा आवी शाश्वत अर्हतनी पूजा करी. पछी ते देवताए विधि युक्त उत्तम पुस्तको वांच्या. त्यारबाद मनवांछित सिद्धिवाळा ते देवताए सिंहासन उपर बेसी नाटक वगेरेनुं अवलोकन कयु. पछी देवीओने साथे लई तेमणे कोईवार जिनयात्रामां, कोईवार नंदनवनमा अने कोईवार रमणीय वापिकाओमां फरवा मांड्यु. एवी रीते इंद्रना जेवा ते देवताए नवनवा देवलोकना सुखने सेवतां केटलोएक काळ निर्गमन कर्यो. देवताओ आ पृथ्वी उपर गमनआगमन वगेरे जे कार्य करे छे, ते उत्तर वैक्रियरूपथी ज करे छे. तेओने केश वगेरे करवानु कार्य कदाचित् संभवे छे, परंतु केश तथा अस्थि (हाड) वगेरे तेमने स्वाभाविक होता नथी. जेओ पूर्वे संसारने प्राप्त करी चारित्रना भजनथी अंगे सुंदर अने उत्तम देवतारूपे थया हता अने जेओ जिनागममां विद्वान् अने उत्तम भावनावाळा बन्या हता. तेवा गुणोनी प्राप्तिमां स्वामी रूप एवा रूपादिकवडे प्रभावना करनारा अने विशाळ लक्ष्मीवाळा जगत्प्रभु श्री विमलनाथ स्वामी तमोने मंगळ आपो. ।।१२७१।। | इति श्री तपोगणनायकश्रीरत्नसिंहमूरिना शिष्य भट्टारक श्री ज्ञानसागरसूरिए रचेला श्री विमलनाथ चरित्र महाकाव्यनो श्री विमलनाथ प्रभुना पूर्वभवना वर्णनरूप त्रीजो सर्ग संपूर्ण थयो ।। इति तृतीय सर्ग 218 श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy