SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री विमलनाथ प्रभुना पूर्वभवनुं वृत्तांत मिथ्या दुष्कृत होजो. दुःखथी पीडित एवा नारकीना भवोमां भमतां में जे जीवोना समूहने दुःखी कर्या होय, तेनी हुँ गर्दा करुं छु.।।१२४७।। सुकृत अनुमोदना - पूर्वे जो में सातक्षेत्रोमां द्रव्य, बीज त्रण प्रकारना 'करणयोगे वाव्यु होय, तेनी अनुमोदना करुं छू. पूर्वे जो में ज्ञान दर्शन अने चारित्रनुं त्रण प्रकारना करणयोगे पालन कयु होय तेनी हुं अनुमोदना करुं छं. सामायिक वगेरेना विधिथी त्रण प्रकारना करणयोगे जो में आवश्यक कर्यु होय, तेनी हुं अनुमोदना करुं छु. पूर्वे में जे सुदेव तथा सुगुरुनी भक्ति त्रण प्रकारना करणयोगे आदरथी करी होय, तेनी हुं अनुमोदना करुं छु. जे मारा शरीरवडे त्रण प्रकारना करणयोगे श्री जिन पूजा अने जिनचैत्यो थया होय, तेनी हुं अनुमोदना करुं छु. मार्गे चालतां थाकी गयेला संघने मारी वायुरूप कायाथी त्रण' प्रकारना करणयोगे जे कांई सुख थयु होय, तेनी हुं अनुमोदना करुं छु. मारी वनस्पति कायावडे त्रण प्रकारना करणयोगे श्री जिनपूजा थई होय तेनी हुं अनुमोदना करुं छं. मारी त्रसरूप कायाथी त्रण प्रकारना करणयोगे जे कांई जिनधर्मनो उपकार थयो होय तेनी हुं अनुमोदना करुं छु. जेना भोजन करवाथी कोईने क्यारेय पण तृप्ति थती नथी, .. तेवा चतुर्विध आहारनो हुं संवर करुं छु. उत्तम चारित्र, दान, शीळ, तप अने बीजुं जे कांई शुभ कर्म जेना विना निष्फल थई जाय छे, तेवो ते शुभ भाव मने । प्राप्त थाओ. जेनाथी सर्व पापोनो क्षय थाय अने मंगळनो संचय थाय, तेवा नवकारमंत्रनुं ध्यान मने हमणां ज प्राप्त थाओ." आ प्रमाणे धर्म ध्यानमां तत्पर एवा ते पद्मसेनमुनि आयुष्यनो क्षय थतां मृत्यु पामीने सहस्रार देवलोकमां इंद्रसामानिक देवतारूपे उत्पन्न थया. त्यां पहेला (समचतुरस्र) संस्थानमा रही पर्याप्तपणे पटु शरीरवाळा बनी (यौवन) वयमां आवेला पुरुषना जेवा थई रह्या. पछी अंतर्मुहर्तमां शय्याने आच्छादान छोडी दई घणां आभूषणोथी विभूषित, सुगंधी श्वासवाळो अने सात धातुओथी वर्जित एवो ते देव प्रगट थई आव्यो ते समये देवो तथा देवीओनो गण जय जय शब्द बोलतो त्यां आव्यो. अने बे कर जोडी ते आ प्रमाणे वाणी बोल्यो- "स्वामी, तमे पूर्वजन्मना कया पुण्यथी देवबुद्धिवडे सर्व वाणीना समूहने जाणनारा देवतारूपे आ देवलोकमां उत्पन थया? अवधिज्ञानथी जाणी ते देवताए चारित्रवडे उपार्जन करेलुं पूर्व- सर्व पुण्य तेमनी आगळ कही आप्यु. पछी ते दिव्य पलंगमांथी उठी 1. मन, वचन. अने कायाना योगवडे करवू, करावq अने अनुमोदq थयुं होय. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 217
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy