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________________ श्री विमलनाथ प्रभुनुं च्यवन तथा जन्म चतुर्थ सर्ग राजानी जेम सुवर्णगोत्रनी शोभाथी भरपूर, मंडल लक्ष्मीथी युक्त अने छाया सहित एवो जंबूद्वीप शोभी रह्यो छे. ए द्वीपनी अंदर आवेला षट् वर्षधर पर्वतोने सिद्धांतमां कुशल एवा पंडितो प्रौढ क्षमाधर, बहु आयुष्यवाळा अने शाश्वत कहे छे, ए आश्चर्यनी वात छे. ते अतिशय लघु छतां लक्ष योजनना प्रमाणथी विभूषित छे, अने सदा वृत्तना योगथी पोतानी जातना द्वीपोमां मुख्यपणाने प्राप्त थयो छे. ते जंबूद्वीपमां सन्मार्गे चालनाराओने नेत्ररूप एवं भरतक्षेत्र आवेखें छे, जेनी अंदरनो आ मध्यखंड तेना नेत्रनी उत्तम कीकीना जेवो देखाय छे. तेनी वच्चे पडीने वैताढ्य पर्वते जेने बे खंडवाळु करेल छे, जे अखंड लक्ष्मीथी मंडित अने "बुद्धिवडे पंडित छे. हिमालयथी वहन करनारी अने धन्य एवी गंगा तथा यमुना नदीए पोताना जलना संग्रहथी ते भरतक्षेत्र प्रत्येक त्रण खंडवाळं बनेलं छे. जेनी अंदर पद्मद्रहमां थयेली नवीन पद्मिनीना जेवी निर्मल गंगा आवेली छे, जे गंगाए महेशना मस्तकने विभूषित करेलुं छे. ए गंगानो प्रभाव सांभळो-'जेना नपुंसक गांगेय पुत्र सर्वेना चित्तने हरे छे, छतां ए पुत्रना कारणरूप छे. शिव-शंकर तथा माधव-विष्णुथी रहित एवी यमुना नदी कृष्णवर्णवाळी छे, 1. राजा पक्षे सुवर्ण-उच्च जाति अने गोत्र-उच्चकुलनी शोभार्थी भरपूर होय छे; मंडल लक्ष्मी-देशमंडलनी लक्ष्मीथी युक्त अने छायाए युक्त होय छे. तेवी रीते जंबूद्वीप सुवर्णगोत्र-सुवर्णना (मेरु). पर्वतनी शोभावडे भरपूर अने मंडललक्ष्मी तथा छायाथी युक्त छे. 2. षट् वर्षधर-एटले छ (क्षेत्र मर्यादा करनारा) पर्वतो प्रौढ मोटी क्षमा-पृथ्वीने धरनारा अने शाश्वत होय छे. षट् वर्षधर-छ वर्षने धारण करनारा छ वर्षना होय ते प्रौढ क्षमागुणने धारण करनारा बहु आयुष्यवाळा-शाश्वत केम होई शके? ए आश्चर्य. 3. लघु-नानो होय ते लक्ष योजनना प्रमाणवाळो केम होय? ए विरोध. 4. वृत्त-सारं आचरण पक्षे वृत्त-गोळाकार जे सारा आचरणवाळो होय. ते पोतानी जातमां मुख्य थाय छे. 5. अर्थात् जेमां बुद्धिमान् पंडितो रहेला छे. 6. गंगा नदी पद्मिनीना जेवी निर्मल जळवाळी छे. अने ते शंकरना मस्तक उपर रहेली छे. पद्मिनी पण महेश-महान-ईशपुरुषना मस्तक उपर रहे छे. 7. गांगेय-ए गंगाना पुत्र भीष्मपिता तेमणे नपुंसकना जेवू ब्रह्मचर्य व्रत लीधुं हतुं छतां पण ते गंगानो प्रभाव पुत्र थवामां कारणरूप बने छे. 8. यमुना नदीमां शंकर तथा विष्णुढं स्थान नथी अने नीच-कु-पृथ्वीना संगथी मलिन थईने ते सागर प्रत्ये गमन करनारी छे. जे स्त्री शिव कल्याणनी मा-लक्ष्मीना धव-स्वामीथी रहित होय. ते स्त्री नीच पुरुषना संगी मलिन थई परपुरुषनी साथे गमन करनारी थाय छे. श्री विमलनाथ चरित्र - चतुर्थ सर्ग 219
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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