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________________ धर्मरुचि मुनिनी कथा पदार्थोनी मध्ये सर्प हशे?" गुरु बोल्या, "हा, वखते सर्प पण होय." पछी ते मुनि गुरुनां वचनना बळथी रोष धरी बबडतो बबडतो सीकुं (झोळीनी गांठ) छोडवा लाग्यो अने नाक मरडवा लाग्यो. तेवामां शासनदेवीए ते पदार्थोमां एक वैक्रिय सर्प नाखी दीधो. तेने जोतां ज ते मुनि संभ्रम पामी गुरुना शरणे आव्यो. तेणे पोताना प्रगट अपराधने आदरपूर्वक खमावा मांड्यो. ते समये देवी पण प्रगट थई तेने ठपको आप्यो. पछी संवेगने प्राप्त थयेला ते सोमिलार्य मुनिए गुरुने आदरथी जणाव्यु के, "भगवन्, हवे आजथी हुं प्रमाद करीश नहिं. आपनी पासे जे साधुओ आवशे तेमना दांडाने हुं ग्रहण करीश अने आसन आपीश." पछी सोमिलार्य मुनि आचार्यनी पासे जे घणा साधुओ आवे तेमनी सन्मुख जवा लाग्यो अने तेमना चरणोने पुजवा लाग्यो. तेमना दांडाने लई, नीचे तथा उपर पुंजी सारे स्थाने मूकवा लाग्यो अने पोते मनमां दुःख कंटाळो लाव्या वगर तेमने मान आपवा लाग्यो. ज्यारे ऋणरहित पुण्यवान् साधुओनो गण जंगलमां आव्यो होय, तो त्यां पण ते नित्य विनय करतो अने आदानसमिति पाळतो हतो. कृतार्थ सोमिलार्य मुनि ते समितिना प्रभावथी कर्मनो क्षय करी, केवलज्ञान प्राप्त करी मोक्षने प्राप्त थया. एवी रीते हे मुनि, तमे पण सदा चोथी समितिने धारण करो के जेथी कर्मथी मुक्त थई शको. ।।१०५२।। जे ठल्लो (वडीनीति), मूत्र (लघुनीति), अनेषणीय (सदोष-अकल्प्य), आहार वगेरे ज्ञानीए बतावेला निर्दोष स्थानमा परठवे ते पांचमी उत्सर्ग समिति कहेवाय छे. ज्यां लोकोनी आवजाव न होय, कोई जुवे तेवू न होय, स्त्री, नपुंसक अने पशुथी जे वर्जित होय अने जे निर्जीव, छायावाळु अने दर राफडा वगरनुं शुद्ध स्थान होय, तेवा स्थानमां दिशा, गाम, सूर्य अने पवनने सन्मुख वर्जीने अने अवग्रह (भूमि)नी अनुज्ञा लईने सद्बुद्धिमुनिए ठल्लो करवो जोईए. जे मुनिए पांचमी समितिने उत्कृष्ट शक्तिवडे सदा पाळे छे. ते धर्मरुचि मुनिनी जेम संयमनी शुद्धिवाळो थाय छे. धर्मचि मुनिनी कथा कोई एक गच्छमां मूल गुण तथा उत्तर गुणोथी अग्रणी थयेला अने सिद्धांत भणवामां उद्योगी रहेनारा धर्मरुचि नामे एक पवित्र मुनि हता. एक वखते संध्याकाले स्वाध्याय करवामां व्यग्र हृदयने लईने तेमनाथी मूत्र करवानी भूमिने लगतुं स्थंडिल शोधी शकायुं नहीं, तेथी तेमनुं पेट स्थूल थई गयुं अने कुक्षिमां शुल उत्पन्न थई आव्यु. ते समये शीतकाळमां हाजतना वेगने धारण करवाथी ते श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 205
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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