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सोमिलार्यनी कथा
सोमिलार्यनी कथा पूर्वे कोईएक नगरमां सोमिलार्य नामना ब्राह्मणे पोताना पापनी शुद्धिने माटे गुरुनी समीपे दीक्षा ग्रहण करी. एक वखते तेना आचार्यगुरुनी विहार करवानी इच्छा थई आवतां तेमणे सोमिलार्यने कह्यु के, "पात्रां-उपकरणो सत्वर बांधी तैयार करीले." ते सोमिलार्य मुनिए गुरुना कहेवा प्रमाणे करी लीधुं. तेवामां कोई कार्यने लईने गुरु रोकाई गया. पछी ज्यारे पौरुषी (पोरसी) आवी एटले गुरुए ते मुनिने तरत कर्वा के, "हमणां विधिथी ते पात्र उपकरणो वगेरेनी यथाविधि-अन्युनाधिक एवी प्रतिलेखना फरीवार कर. ते प्रतिलेखनानो विधि आ प्रमाणे करवानो छे.
वस्त्रनी प्रतिलेखनामां एक दृष्टिए नव प्रतिलेखना छे. ते आखोटक प्रखोटक अने पुरिम ए छ कहेली छे. देहनी प्रतिलेखना मस्तक, मुख, हृदय अने चरणमा प्रत्येकने त्रण त्रण अने पृष्ट भागे चार प्रतिलेखना छे. पात्रने बाहर बार अने मध्ये बार प्रतिलेखना कहेली छे. अने हाथना स्पर्शथी एक-एवी रीते त्रणेमां बधी मळीने पच्चीस प्रतिलेखना थाय छे. प्रभात काले मुखवस्त्रिका, रजोहरण, बे निषद्या, चोलपट्ट, त्रण कल्प, संथारो अने उत्तरीयवस्त्र-एम दश प्रतिलेखना थाय छे. आना संबंधथी राईप्रतिक्रमणनो समय समजी लेवो. सूर्योदय पहेलां प्रातःकाले प्रतिक्रमणनो वखत विद्वानोए जाणी लेवो. एक पाये ऊणी पौरुषी होय, त्यारे प्रथम मुहपत्ती, गुच्छक, दोरो, पछी पटल, पछी पात्रोना केशरीआ, पात्रक, पछी मात्रक, रजस्राण, पात्रबंध (झोळी) अने ते पछी परिष्ठापनक, मुखवस्त्र, चोलपट्टो, वसति, गुच्छक, पछी परिष्ठापनक, पात्राना केशरा, पात्रानुं बंधन, पटळ (पडलां), रजस्राण, मात्रक, पात्रक, पछी सूतरना अने उनना त्रण कल्प, पछी उत्तम संथारो, काजो लेनार साधुए अवळी रीते दांडो अने चोलपट्टो पडिलेहवा. उपवास होय ते दिवसे तो छेल्ले पहोर दांडो अने चोलपट्टानी छेडे (बीजी प्रतिलेखना कीधा पछी) प्रतिलेखना करवी." गुरुनां आवा वचन सांभळी तेणे गुरुने कडं, में हमणां ज अगाउ प्रतिलेखना करी छे, तो पुनः वृथा शा माटे करवी जोईए? गुरु बोल्या, "अरे मुनि, श्री केवळी भगवानने ते प्रतिलेखना, वस्त्रादिक जंतुओ वडे संसक्त होय तो करवानी होय छे अने छद्मस्थोने ते असंसक्त अने संसक्त उभयथी करवानी होय छे. ते पदार्थोमां मध्ये कदाचित् निश्चये कलीब-नपुंसक जीव होय, तेथी छद्मस्थ मुनिओए तो ते प्रतिलेखना सतत करवी ज जोईए." आथी ते मुनिए हृदयमां रोष लावीने गुरुने उंचे स्वरे कडं, "शुं ते
श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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