SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामनी राणीनी कुक्षीए बलीनो जीव देवलोकमांथी आवी उत्पन्न थयो. जेनुं नाम राजाए मेरक पाड्युं. साठ धनुष्यनी काया अने साठ लाख वर्षना आयुष्यवाळो मेरक प्रतिवासुदेव त्रण खंडनो भोक्ता थयो. आ अरसामां द्वारिका नामे नगरीमां रुद्र नामे राजा हतो, तेने सुप्रभा अने पृथ्वी नामे बे उत्तम राणीओ हती. पेलो नंदिसुमित्रनो जीव अनुत्तर विमानमांथी च्यवी सुप्रभाराणीनी कुक्षीमां पुत्रपणे आवतां बळदेवना जन्मने सूचवनारा चार महा स्वप्नो राणीए जोयां अने शुभ दिवसे कांतिथी उज्वल एवा पुत्रनो जन्म आप्यो. तेनुं नाम पिताए भद्र पाड्युं. धनमित्रनो जीव अच्युत देवलोकमांथी च्यवी रुद्रराजानी बीजी राणी पृथ्वीना गर्भमां आव्यो. वासुदेवना जन्मने सुचवनारा सात महा स्वप्ना राणीए जोयां. अवसर प्राप्त थतां पृथ्वीराणीए शुभ लक्षणोथी युक्त पुत्रनो जन्म आप्यो. जेनुं नाम स्वयंभू राजाए पाड्युं. अहिं बळभद्र, भद्र अने स्वयंभू वासुदेव अनुक्रमे मोटा थवा लाग्या. एकदा उद्यानमां जतां मोटुं कटक जुवे छे, जे शशिसौम्य राजाए प्रतिवासुदेव मेरकने दंडरूपे मोकलेलुं मोटुं कटक जुवे छे, ते जोतां पोताना उग्र सुभटोने ते कटकमां जेटलुं होय तेटलुं बधुं बळात्कारे लई लेवा हुकम करे छे, जेथी सुभटो बधुं लई ले छे. मेरक प्रतिवासुदेवनी आगळ ते वृत्तांत जाहेर थाय छे, जेथी मेरक क्रोधातुर बने छे, तेनो मंत्री, रुद्रराजाना पुत्रो भद्र अने स्वयंभूए बळात्कारे लई लीधानी खबर आपे छे. पोताना मंत्रीने रुद्रराजानी राजधानीमां मोकले छे, मंत्री राजाने समजावी लील पाठुं मेळववा प्रयत्न करे छे. मेरक सामे नकामुं वैर न उत्पन्न करवा अने मेरकने बमणो दंड आपवा जणावे छे, जेथी स्वयंभू ते सांभळी क्रोधे भराय छे अने मेरकनो तिरस्कार करी पाठुं न आपवा जणावे छे. मंत्री मेरकने आ सर्व वृत्तांत जणावे छे. जेथी मेरक क्रोधे भराय छे। अने लडवा सैन्य तैयार करे छे; मंत्रीओ नहिं लडवा माटे वारवा छतां मेरक द्वारिका तरफ चालवा लाग्यो. सामेथी तेने आवतो सांभळी पोताना बंधु भद्र सहित स्वयंभू वासुदेव पण लश्कर साथे तैयार थई सीमाडा उपर उभो रहे छे. भाविभाव बळवान छे. वासुदेव प्रतिवासुदेवने हणी त्रणखंड पृथ्वीना धणी थाय छे तेवो अचल नियम छे, ते मुजब स्वयंभूने मेरके मूकेलुं चक्ररत्न हस्तमां प्राप्त थतां मेरक उपर ते छोडतां मेरकनुं मस्तक छेदी नांखे छे. पछी स्वयंभू वासुदेव भरतार्द्धने साधी कोटी शिला उपाडी त्यां पाछी मूकी पोतानी द्वारिका नगरीमां आवे छे; पछी रुद्रे पोताना पुत्र भद्रनी साथे स्वयंभूने वासुदेवपणानो अभिषेक करे छे. VIII
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy