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________________ मळे तेम जणावतां राजाने वैराग्य उत्पन्न थतां मुनि धनमित्रने दीक्षा आपे छे अने पछी मुनिराज उपदेश आपे छे के हे शिष्य! ते चारित्र ग्रहण कयुं छे माटे हवे तुं रागद्वेष करीश तो लक्ष्मीधर वगेरेनी जेम संसार तरी शकीश नहिं. अहिं कृपाळु मुनि लक्ष्मीधर वगेरेनी कथा कहे छे. अहिं लक्ष्मीधर, सुंदर, अर्हद्दत्त अने नंद ए चार भाईओ के जे वरुण नामना श्रावक शेठना पुत्रो छे. तेना घरमां चारित्रना सिद्धांत वगेरे सैन्योए तेना घरमां वास करेलो जाणी मोहराजा चिंतातुर थाय छे अने वरुणशेठना चारे पुत्रोने दृष्टिराग, स्नेहराग अने विषयराग प्रथम त्रण पुत्रने अने छेल्ला नंदने द्वेष कुंजर पोतानी जाळमां फसावे छे. पछी वरुणशेठ तेना पुत्रोने जिनेश्वर भगवान अने तेना धर्म उपर राग करवा अने संसार उपर राग नहिं करवा प्रथम पुत्रने उपदेश करे छे. ते मानतो नथी, पछी सुंदर नामनो बीजो पुत्र रागी पुरुषोने शुं सुख होय छे, तेना उपर लोभाकर अने लोभानंदीनी कथा कहे छे. अवांतर सुंदर सूरराजाना पुत्र जयचंद्रनी कथा कहे छे. परंतु ते पुत्र रागने छोडतो नथी, पछी वरुणशेठ त्रीजा पुत्रने पण राग छोडवा उपदेश आपे छे. ते पण मानतो नथी, पछी शेठ चोथा पुत्र नंदने द्वेष त्यागवा उपदेश करे छे ते पुत्रे पण द्वेषने तज्यो नहीं. जेथी वरुणशेठने संसार उपर अभाव उत्पन्न थाय छे. जेवामां उद्यानमां श्री विजयकेवळी गुरुमहाराज पधार्या, तेमने वंदना करवा वरुणशेठ त्यां आवे छे. वरुणशेठ पोतानी अशांति (अनितिवाळा पुत्रो)नी हकीकत कही संभळावे छे. केवळी भगवंत वरुणशेठने पोताना घरमां मोहराजा छे तेज तेमना पुत्रोने कुबुद्धि आपे छे. ते मोहराजानो बधो वृत्तांत केवळीभगवंत वरुणशेठने जणावे छे. अहिं चारित्र धर्म अने मोहराजानुं स्वरूप (रागद्वेषनुं स्वरूप) अने वरुणशेठना ते चारे पुत्रो उपर केवी असर करे छे ते विवेचन छे, जे रसयुक्त, सुंदर, बोध लेवा लायक अने अवश्य मनन करवा जेवं छे. वरुणशेठ केवळी महाराजनो उपदेश सांभळी घेर जई सात क्षेत्रमा धन वापरी पोतानी स्त्री साथे ते • केवळी भगवंत पासे चारित्र ग्रहण करे छे. आ प्रमाणे गुरुवडे शिक्षा पामेल धनमित्र मुनिए एक वखते कर्मनी विचित्रताथी गुरुए वार्या छतां, आ तपस्याथी हुं बलीनो वध करनारो थाउं तेवू नियाj बांध्यु. पछी क्रोधवडे शरीरने दमन करीने अनशन लई मृत्यु पामी अच्युत देवलोकमां देवपणे उत्पन्न थाय छे. हवे बलीराजा पण दीक्षा लई चिरकाळ पालन करी मृत्यु पामी उत्तम देवलोकमां देवपणे उत्पन्न थयो. त्यां देवतानां सुखो भोगवी आयुष्यनो क्षय थतां. त्यांथी चवी आ भरतक्षेत्रमा नंदन नामना नगरमां समरकेशरी राजा थयो. ते सुंदरी xii
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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