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________________ आवे छे. प्रभुने राज्यनु पालन करतां त्रीस लाख वर्षो वही गया पछी अने तेमनुं भोग फळ कर्म क्षीण थतां दीक्षा लेवानो विचार थतां ज आसनकंपथी प्रभुने दीक्षा लेवानो योग्य अवसर जाणवामां आवतां, ब्रह्मलोक निवासी देवो त्यां आवी धर्म तीर्थ प्रवर्ताववा विज्ञप्ति करे छे, पछी प्रभु वरसीदान आपे छे. एक वर्षमां त्रणसो अठासी क्रोड अंसीलाख सुवर्णतुं दान करे छे. पछी त्यां आवेल बीजा वैमानिक देवो अने इंद्रो सुगंधी तीर्थ जळ लावी प्रभुने स्नान करावे छे. दिव्यचंदन चर्ची देवदुष्य वस्त्र अने अलंकारोथी विभूषित करे छे, पछी देवदत्ता नामनी शिबिका उपर प्रभु आरूढ थाय छे अने याचकोने दान आपता सहस्राम्र वनमां पधारे छे. त्यां अशोकवृक्ष नीचे उतरी आभूषणो वगेरे तथा बधा परिग्रहनो त्याग करतां केशोनो-पंचमूष्टि लोच करी (माघमासनी शुक्ल चतुर्थीना रोज) पाछला पहोरे छट्ठनो तप करी प्रभु दीक्षा ले छे, के तरत ज चोथं मनःपर्यवज्ञान प्रभुने उत्पन्न थाय छे. इंद्रो अने देवो नंदीश्वर द्वीपनी यात्रा करी स्वस्थाने जाय छे. बीजा दिवसे प्रभु धान्याकंट नामना नजीकना गाममा प्रथम पारणाने माटे जाय छे. त्यांना जयराजाना प्रासादमा प्रवेश करी निर्दोष आहार ग्रहण करे छे. देवदुंदुभी देवताओ वगाडे छे अने राजाने त्यां सुवर्णनी वृष्टि थाय छे. पछी प्रभु त्यांथी अन्य स्थळे विहार करी जाय छे. ए अरसामां जंबूद्वीपनी अंदर अपरविदेह क्षेत्रने विषे आनंदकरी नामनी । नगरी छे, त्यांनी नंदिसुमित्र नामे एक राजा छे. त्यां सुव्रत नामना कोई एक आचार्य पधार्या. राजा आचार्य महाराजने वंदन करवा गयो ज्यां आचार्य महाराज धर्मदेशना आपे छे. तेथी वैराग्यथी राजानो आत्मा रंगतां राजा चारित्र ले छे. उत्तम रीते संयम पाळतां राजा पंचत्व पामवाथी पांच अनुत्तर विमानमां महान देवरूप उत्पन्न थाय छे. __आ जंबूद्वीपना भरतक्षेत्रमा श्रावस्ती नामे नगरी छे, तेनो धनमित्र नामे राजा छे. एक वखते तेनो मित्र बलीराजा त्यां आवे छे. बंने मित्रो पोतपोताना राज्यनो दाव मूकी जुगार रमतां धनमित्र पोतानुं राज्य हारी जाय छे. जेथी धनमित्रने बलीराजा राज्यमांथी काढी मूके छे. तेनी राणीओ पण पोताना पीयर जाय छे. राजा धनमित्र बहावरो बनी गयो छे अने वनमां भमतां भमतां एक दिवस सुपात्र मुनिने जोया अने मुनिश्रीने वंदना करी मुनिए तेने धर्मोपदेश आपवा मांड्यो. मुनिराज पांच प्रकारना पुरुषोनुं दृष्टांत तेना उपनय साथे आपे छे, जेथी राजाए पोताने राज्य मळशे के नहिं ते पूछतां ज्ञानी मुनि ज्ञानथी जोई राज्य नहीं
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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