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आ अरसामां बे वर्ष सुधी विहार करी प्रभु श्री विमलनाथ भगवान विचरतां विचरता पोताना दीक्षा स्थानमा पुनः आवे छे. प्रभु सहस्राम्रवनमां पधारी जंबूवृक्षनी नीचे शुद्ध स्थानमां छ? तप करी, स्थिर थई प्रतिमाने वहन करी, काउसग्गध्याने रहेतां थकां अपूर्व करणमा रही क्षपकश्रेणीने प्राप्त थयेला प्रभुए क्षीण मोहनो अंत करी घाती कर्मोनो उच्छेद कर्यो; अने शुक्लध्याने रहेतां पोष मासनी शुक्ल षष्ठीने दिवसे चंद्र उत्तराभाद्रपद नक्षत्रमा आवतां केवळज्ञानने प्राप्त थया. ईन्द्रोना आसन चलायमान थतां त्यां आवी समवसरणनी रचना करी. जेथी प्रभु समवसरणमां जवाने पधार्या. चैत्यवृक्षनी प्रदक्षिणा करी प्रभु तीर्थाय नमः एम कही सिंहासन उपर बिराज्या अने देव, मनुष्य, तिथंच वगेरे पोतपोताना स्थाने बिराज्या. (आ समवसरणनी रचना देवो केवी रीते करे छे तेनुं विस्तारपूर्वक वर्णन अहिं जाणवा लायक छे.) अहिं सर्वज्ञना पुत्र अरिमर्दन प्रभुने केवळज्ञान उपज्युं जाणी त्यां आवे छे अने प्रभुने स्तुति अने विनंती करी पोताना उचित स्थाने बेसे छे. पछी जगद्गुरु अमृततुल्य सम्यक्ज्ञान, दर्शन, चारित्र वगेरे ज मोक्ष मार्ग छे ते उपर देशना आपे छे जे मनन करवा लायक छे. जे उपदेशथी अनेक जीवोए शुद्ध दीक्षा ग्रहण करी, पछी प्रभुए पोताना शिष्यो पैकी मंदर वगेरे छप्पन साधुओने गणधर पदवी आपी. अहीं प्रभुना अतिशयनो महिमा अने वर्णन जणावी ग्रंथकर्ताश्री चोथो सर्ग पूर्ण करे छे.
पंचम सर्ग श्री विमलनाथ प्रभुनी देशना, गणधरदेशना, मोक्षगमन अने
प्रभुजीनो परिवार
पाना नंबर २९० थी ३४७ आ छेल्ला सर्गमां श्री ज्ञानसागरसूरीश्वरजी महाराज प्रभुनी तथा गणधरदेशना, मोक्षगमन अने परिवार वर्णन जणावे छे. श्री विमलनाथ प्रभुने केवळज्ञान प्राप्त थया पछी प्राणीओना उपर उपकार करवा अनेक क्षेत्रोमां विहार करवा लाग्या. अने उपदेशामृत वरसाववा लाग्या. मुख्य मुख्य स्थानोमां पुण्य प्राप्त करवामां तत्पर तेवा चतुर्विध देवताओए पूर्व तीर्थंकर भगवाननी जेम समवसरण रचता हता. एक वखते प्रभु द्वारिकानगरीमां पधार्या, ज्यां देवताओए समवसरणनी रचना करी. उद्यानपालकोए नगरमां जई स्वयंभू वासुदेवने प्रभु पधार्यानी वधामणी आपी. वासुदेव स्वयंभू पोताना बंधु भद्रने साथे लई परिवार
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