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संगत साधुनी कथा मुनीश्वर, तेवी रीते तमारे पण ईर्यासमिति पाळवी के जेथी आलोक तथा परलोकमां तमारा निर्मल करमां कल्याण प्राप्त थाय. बीजी भाषा समिति
जे जरूरी कार्यने वखते निर्दोष भाषा बोले, सुविचारवान् थई कारण वगर मौन धरी रहे, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष अने भयथी थयेली अने वाचाळता, हास्य अने निंदाथी युक्त एवी भाषा जरूरी कार्यमां पण बोले नहि, तेवी उत्तम बीजी समिति पोताना 'वाचंयम नामने सत्य करनारा साधुए सदा पाळवी जोईए अने श्री जिन भगवाननी कहेली वाणीनुं ज लालनपालन करवू जोईए. सारी बुद्धिवाळा मुनिए लोकस्थितिने अने जिन प्रवचनने विरोध न आवे एवं वचन संगत साधुनी जेम बोलवू जोईए.
संगत साधुनी कथा कोई एक गुणवाळा गण-गच्छनी अंदर आगमना समूहने जाणनारा अने बीजी भाषा समितिथी प्रकाशमान एवा संगत नामे साधु हता. स्वीकार करेलाने पाळवामां पर्वतथी पण धीर एवा ते संगत मुनि पोताना गुरुनी साथे विहार करता करता कोई नगरमां आव्या. त्यां गुरुए ज्ञानथी जाण्यु के, "केटलाएक दिवसोमां आ नगरमां सर्पथी पण महावक्र एवं परचक्र आवशे. ते आ नगरने तोडशे नही, पण तेनाथी मोटो रोध थई पडशे, माटे अहिं केटलाएक दिवस सुधी रहेq उचित नथी." आq जाणी ते गुरु ग्लानप्रमुख मुनिओनी वैयावच्चना कामने माटे संगतमुनिने त्यां मूकी पोते अन्यस्थळे विहार करी गया. ते पछी केटलेक दिवसे ते नगर उपर शत्रु सैन्य चडी आव्यु तेथी जवा आववानो निरोध थतां लोकोने दुःख उत्पन्न थयुं, त्यां पथ्य वगेरेनो अभाव थवाथी रोगी मुनिने सीदाता जोई ते संगत मुनि बीजे दिवसे बहार सैन्यनो समूह पडेलो छतां मांडमांड ते नगरमाथी नीकळी भिक्षा माटे फरवा लाग्या. तेवामां ते मुनि सेनापतिनी दृष्टिए पडी गया. सेनापतिए पूछ्युं के, "तमे एकाकी क्याथी आवो छो?" मुनि बोल्या, "हुं नगरमांथी आq छु." सेनापति बोल्यो, "साधो, राजानो शो अभिप्राय छे? ते कहो" मुनिए उत्तर आप्यो के, "मुनिओ राजानी वार्ता करता नथी." तेणे का, "त्यारे त्यांना लोकोनो अभिप्राय शो छे? ते कहो, के जेथी अमे तेने अनुसारे कार्य करीए." मुनि बोल्या, "लोकोनो अभिप्राय कोण जाणी शके? कारण के मुंडे मुंडे (मस्तके मस्तके) जुदी जुदी बुद्धि होय छे, एम शास्त्रमा कर्तुं छे. हे सेनापति जेमनुं चित्त केवळ शास्त्रनी साथे बंधायेलुं छे अने जेओ वाचंयम 1. वाणीने नियममां राखनार. 2. शत्रु सैन्य. 3. मगजे मगजे. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
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