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________________ संगत साधुनी कथा कहेवाय छे, तेवा अमारे कांईपण सांभळवानो अने कहेवानो अधिकार नथी." सेनापतिए फरीवार पूछ्युं, "आ नगरमां वसनारा राजाने हाथीओ, रथो, घोडाओ अने पेदल केटलां छ?'' मुनि बोल्या, "सेनापति, हुं ते बराबर जाणतो नथी, जो हुं तेमनी संख्या कहुं तो मारी भाषा सत्यामृषा (साचीखोटी) थाय." सेनापति बोल्यो-"अरे मुनि, तमे आ पृथ्वी उपर सर्वज्ञना पुत्र तरीके प्रख्यात छो, तेथी अमोने कहो के, केटले दिवसे अमारो जय थशे? मुनि बोल्या-"दीक्षा वगेरे लेनार यतिनुं निमित्तांग-ज्योतिषनुं ज्ञान घणा अनर्थोने आपनारा एवा संसारने अर्थे न होवें जोईए." ते सांभळी ते सेनापति अंतरमां तो खुशी थयो, पण बहारथी क्रोधने धारण करीने बोल्यो-"अरे! तुं कोई हेरू छे; ते वेष बदलो करीने अहिं क्यांथी आव्यो छे? अमो राजाना मंत्र-विचारोने जाणनारा लाखो रूपवाळा छीए." मुनि बोल्या-"अमो दुष्कर्मरूपी राजाना मर्मने प्रकाश करनारा छीए. आ लोकमां जे उत्तम पुरुष छे, ते असत्य वचन बोलतो नथी. ते शद्ध अने सत्य वचनने ज माने छे. आ लोकमां क्रोधी, बे जीभवाळो सर्प अने सर्वभक्षी अग्नि पण सदा सत्यने माने छे, तो पछी बीजा प्राणीओनी शी वात करवी? जेनाथी पोताने अने परने जरा क्लेश थाय अने कजीयो पण थाय, तेवू परने पीडाकारी वचन मुनिओ बोलता नथी." पछी आ प्रमाणे बीजी शुद्ध भाषा समितिने पाळनारा ते संगतमुनिने सेनापतिए मान आप्युं अने तेमनी पासेथी आहेत धर्म स्वीकार्यो. आ प्रमाणे तमारे बीजी भाषासमिति विवेकथी धारण करवी, जेथी आलोक तथा परलोकमां तमारी पूज्यता थाय. ।।९३१।। त्रीजी एषणा समिति छे. आहार, उपधि अने शय्या वगेरेने उद्गम, उत्पादन अने एषणा-इच्छाना दोषथी रहित ग्रहण करे, ते मुनिने त्रीजी एषणा समिति होय छे. ते आ प्रमाणे जे गृहस्थो षट् जीवनिकायने हणी साधुने माटे अशन वगेरे करे ते आधाकर्मी कहेवाय छे. अथवा सर्व भिक्षुकोने दान आपवाने अर्थे जे करवामां आवे, ते शुद्धबुद्धिवाळा यतिओए औद्देशिक कहेलुं छे. जे साधुने अर्थे अने पोताना घरने अर्थे करवामां आवे, ते आधाकर्मीना अवयव भागवाळु पूतिकर्म कहेवाय छे. तेने मिश्र कहे छे. जे साधु निमित्ते जुदु राखे, ते स्थापना कहेवाय छे. जे गुरुए आव्या छतां के अण आव्या छतां पहेलां (आगळथी) श्रावक विशेष (आहारादिकनी तैयारी) करे ते प्राभृतिका कहेवाय छे अने जे आपवानुं (अंधारामांथी अजवाळामां लावी) प्रगट करे, ते प्रादुष्करण कहेवाय छे. जे साधुने माटे मूल्य आपीने लेवामां आवे ते क्रीतदोषवाळु कहेवाय छे अने 198 श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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