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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा आकर्षायेली निरीहता नामनी कन्या सत्वर आवशे." आ प्रमाणे गुरुनां वचन सांभळी राजा बोल्यो, " भगवन् सर्वजनोने सुख करवाने माटे कन्यानो मेळाप गुरु (गोर) ज करावे छे, तो तमे मने दीक्षा रूपी कन्या आपशो एटले शुभ परिणाम रूपी राजा पोते ज पोतानी ए बधी कन्याओ मने आपशे, माटे आप शुभ लग्नमां दीक्षा आपी मारा पर कृपा करो. धर्मना कार्यमां विलंब करवो युक्त नथी." पछी गुरुए दीक्षित करेलो ते राजा पद्मसेन मनुष्यना पुरुषार्थादि गुणोथी युक्त थई मोह कर्मी मुक्त थई गयो त्यारे गुरु बोल्या, "हे मुनि, तारे हवे मातानी सेवा करवी माता सिवाय आलोकमां अने परलोकमां चरण न रहे. प्राये करीने कन्या परण्या पछी पुत्रो सहाय करनारी माताने मानता नथी एम कहेवाय छे. माताना चित्त-नगरमां मोहराजा राज्य करे छे, ते बहु काले आवेला सेवकोने जोई रोष पामे छे. पछी तेमने कर्मरूपी सेवकोनी पासे मळमूत्र वगेरेथी भरेला गर्भरूपी कारागृहमां नीचां मुख अने उंचा पग रखावी केद करावे छे, पछी मोहना विरोध विना पोताना आहारमांथी ते माता तेमनुं पोषण करे छे अने पोतानी साथै सुवाडे छे तथा जगाडे छे. ज्यारे तेओने बुद्धि उत्पन्न थाय छे, त्यारे तेओ मस्तक उपर बे हाथ जोडी दुःखी थई मोहराजाने आ प्रमाणे उंचे स्वरे विज्ञप्ति करे छे– 'हे राजा, अमो अज्ञानथी अंध अने सद्गतिथी रहित छीए. अमे ज्यां रहीशुं, त्यां तमारी आज्ञाने ताबे थईने रहीशुं." तेमनी आ विनंती सांभळी ते राजा शांत थई तेमने ते गर्भरूपी कारागृहमांथी छोडे छे. गुप्तिपालरक्षकोए हाथमां पकडेला तेओ ते वखते निर्बल थई रोवा लागे छे, पछी दयाळु हृदयवाळी ए माता तेमने सुवर्ण वगेरे आपी तेओने मुक्त करे छे, पछी तेओ पोताने घेर चाल्या जाय छे. रूप बदलाई जवाथी कोई तेमने ओळखतुं नथी, तेथी तेमने पाणी के भोजन कांई आपवामां आवतुं नथी ते काळे तेमने क्षुधा तृषाथी पीडित एवा जोई ते माता तेमने दूध पाय छे अने विष्टा वगेरेथी अंगे लींपायेला तेमने शूग लाग्या सिवाय साफ करे छे. जो तेओ अभक्ष्य खाय छे, तो तेमने वारे छे अने योग्यमार्गे चलावे छे, सारां वस्त्राभरणोथी नित्य शणगारे छे अने तेमना शरीरनुं पोषण करावे छे. पतिना आदरथी तेमने निशाळे भणवा मोकले छे अने द्रव्यनो सारो खर्च करी तेमने विधिथी परणावे छे, पछी ज्यारे कन्या आवे छे, त्यारे ते पुत्रो रोगनी पीडा थया सिवाय ते मातानुं नाम पण लेता नथी, बीजुं वधारे शुं कहेवुं ? "हे राजा, एक कन्या आवतां आवुं थाय छे, तो पछी जो दस 1. चरण - चारित्र अने पग. श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 193
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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