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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा ठेकाणे माया करवी नही, तेमां धर्मना कार्यमां विशेषे (खास करीने) न करवी. पडेलु घास तृण पण तारे लेवू नही. लोभवृत्ति तजी देवी अने संतोषवृत्तिने भजवी अने बीजाने अवग्रह (वसति-स्थान) माटे पूछी रजा लईने रहे. एवी रीते नित्य करवाथी अचौरता नामनी कन्या तारा गुणोथी जेणीनुं हृदय आकर्षायु छे, एवी थई तारी पासे स्वयंवरा थईने आवशे. हे राजा, ब्रह्मरति नामनी कन्याने अर्थे तुं तारा चित्तमां नीरागताने धारण कर. देव, मनुष्य अने तिथंचनी स्त्रीओने माता समान गणजे. स्त्रीओना वास स्थळमां रहेवू नहीं, स्त्री संबंधी कथा करवी नहि, स्त्रीओनी बेठक सेववी नहि, तेमनी इंद्रियोने जोवी नही, दीवालनां आंतरामा रहेला गृहस्थोनां जोडलांने जोवा नहीं अने मनमां कदि पण सर्व रतिनुं सुख चिंतवq नहि. प्रणीत आहारनो तेमज अतिशय आहारनो त्याग करवो अने शरीरनी अधिक शोभाने यत्नथी छोडी देवी-आ प्रमाणे नित्ये करवाथी तारा गुणोथी जेणी- हृदय आकर्षायुं छे एवी ब्रह्मरति नामनी कन्या तारी पासे स्वयंवरा थईने आवशे. मुक्तताने ईच्छनारा एवा तारे निर्लोभतानु सेवन करवू, हृदयमा विवेक धारण करवो, अनार्यनो संगम छोडी देवो, बाह्य अने अभ्यंतर एवा बे प्रकारना परिग्रहथी पोताना आत्माने जुदो करवो, स्वभाववडे ग्रंथ-परिग्रहनी तृष्णा समावी देवी, बहार अंदर अनासक्त एवं अंतःकरण राखवू, कमळनी जेम निर्लेप रहेवू अने शिष्टाचारमा तत्पर रहे. हे चतुरराजा, आ देह वगेरे सर्व पुद्गल वस्तुओ संबंधी आत्माने योग्य एवी अनित्यतानु चितवन करवं. एवी रीते नित्य करवाथी तारा गुणोथी जेणीनुं हृदय आकर्षायुं छे, एवी मुक्तता नामनी कन्या तारी समीपे स्वयंवरा थईने आवशे. सुविद्यानी इच्छा राखता एवा तारे प्रज्ञा राणीनुं सदा आराधन करवू, सदा शास्त्राभ्यास करवो, प्रमादने वारवो-टाळवो, ज्ञान अने ज्ञानवाळाओनी हर्षथी भक्ति करवी. सदा शास्त्रनुं स्मरण करईं अने सद्गुरुना वचन सांभळवा, ए प्रमाणे करवाथी तारा सद्गुणोथी जेणी- हृदय आकर्षायुं छे, एवी विद्या कन्या स्वयंवरा थई तारी पासे वेगथी आवशे. निरीहता नामनी कन्याने माटे तुं लोभनो त्याग कर. तारा हृदयमां सर्व वस्तुओना स्वरूपनो विचार कर. आ देह दुःखना उपभोगने माटे छे, धन बंधननुं कारण छे, इच्छा हृदयने ताप आपनारी छे. जन्म मृत्युनुं कारण छे, प्रियानो संग-अथवा प्रिय वस्तुओनो संग वियोग माटे छे. संग्रह क्लेशने माटे थाय छे अने भोगनो अभिलाष रोगने माटे थाय छे, तेथी तेओनी अंदर प्रीतिने छोडी दे, ममत्वने छोडी देनारा एवा तारी पासे तारा गुणोथी श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 192
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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