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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा सदा जाणी लेवं. कदि ते जाति उच्च माताथी उत्पन्न थयेली होय, तो पण मद करवो योग्य नथी. कारण के ते जातिमांथी उत्पन्न थयेला सर्वे समानशील होता नथी. ते विषे लख्युं छे के, एक ज उदरमांथी उत्पन्न थयेला अने एक ज नक्षत्रमां जन्मेला मनुष्यो बोरडीना कांटानी जेम समान शीलवाळा होता नथी. कुशळ पुरुषोए कुलनो मद पण न करवो जोईए. कारण के जाति अने कुळनी स्थापना पछवाडेथी थयेली छे. कदि ते कुळ उच्च पिताथी प्राप्त थयुं होय, तो पण तेनो मद करवो उचित नथी. बुद्धिमान् पुरुषे लाभनो मद पण करवो नहीं, कारण के लाभांतराय कर्म श्रीजिन भगवानने पण छोडी शकतुं नथी. ज्यारे लाभांतराय कर्मनो क्षय थाय त्यारे घणुं धन प्राप्त थाय छे अने ज्यारे तेनो उदय थाय छे त्यारे धनवानने धन मळतुं नथी. बुद्धिमान् पुरुषे ऐश्वर्यनो मद पण करवो नहि. आ पृथ्वी उपर राजा पण मुंजनी जेम रांक बनी जाय छे. आ लोकमां बाहुबलि वगेरेना उग्र बळनो विचार करी बुद्धिमान् पुरुषे बळनो मद करवो नहि. सनत्कुमार वगेरेना रूपनी अनित्यता सांभळी बुद्धिमान् पुरुषे आलोकमां रूपनो मद करवो नहि. श्री वीर प्रभुना नंदन भव- उच्च तप सांभळीने बुद्धिमान पुरुषे तपनो मद करवो नहिं, बुद्धिमान् पुरुषे श्रुत-शास्त्रज्ञाननो मद करवो नहि, कारण के चौद पूर्वीओ पण प्रमादथी पतित थई जाय छे. ।।८००।। मनुष्योना सर्व मदो श्रुतशास्त्रवडे जीताय छे. ते शास्त्र वडे ज जे मद करे छे, तेने बीजा भवमां ते ते वस्तुनी हीनता प्राप्त थाय छे, तेथी ए आठे मदनो त्याग करवो, तत्त्वोनो विचार करवो, अरिहंत वगेरे दश (पद)नो सदा हर्षथी विनय करवो. पोताना हृदयने नवनीतना पिंड जेवं मृदु करवू अने लघु वयवाळा पासेथी पण हमेशां विनयपूर्वक ज्ञान संपादन करवं. एवी रीते नित्य करवाथी तारा ते गुणोए जेणीनु हृदय आकष्यु छे, एवी मृदुता नामे कन्या स्वयंवरा थई तारी पासे आवशे. सत्यताने ईच्छनारा एवा तारे सदा समतानु सेवन करवू. क्रोध, लोभ, भय अने हास्यनो यत्नथी त्याग करवो. जेनाथी बीजाने दुःख थाय, एवी वाणी कठोर गणाय, जेथी निंदा अने पिशुनता (चाडी चूगली) थाय तेवू वचन बोलवू नहि. विचक्षण पुरुषे सत्यामृषा-साची खोटी, असत्य, बीजानो घात करनारी वक्र अने मर्म भरेली भाषा बोलवी नहि. एवी रीते हमेशां करता एवा तने तारा गुणोथी जेणी, हृदय खेंचायुं छे, एवी सत्यता नामे कन्या स्वयंवरा थई तारी पासे आवशे. ऋजुतासरलताने ईच्छता एवा तारे शुद्धतानुं सदा आराधन करवू. सर्वथा कुटिलतानो त्याग करवो, सरलता राखवी, वंचना वगरनुं बोलवू, हृदय निर्मळ राखवू, कोई श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 191
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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