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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा नगरमा राखवां, एटलाथी संतुष्ट थईने ते तने वांछित फळ आपशे. वळी विवाहना काममां पुरुषो स्वभावथी ज स्त्रीओना कह्या प्रमाणे चालनारा थाय छे, तेथी तारे प्रथम ते कन्याओनी माताओने वश करी लेवी. तेओमां सारी क्षमाने ईच्छनारा एवा तारे प्रथम जे शांति नामनी माता छे, तेणीनुं तो सदा मान करवू. सर्व साथे सारी मैत्री करवी, पराभव सहन करवो, अपकार करनार शत्रुने पण उपकारी तरीके चिंतववो, कारण के ते कर्मोनो क्षय करवामां सहाय रूप छे. कोईनी उपर कोप करवो नहिं. कर्मोने दोष आपवो, मत्सरचं मर्दन करवू. सहस्र मल्ल प्रमुख मुनिओनुं हृदयमां चिंतन करवू, नरकादिकनी पीडाने शिथिल करवानी चीवट राखवी अने पोतानु मर्कटना जेवू चंचळ मन स्थिर करवं. आ प्रमाणे हमेशां करवाथी तारा ए गुणोवडे जेणीनुं हृदय आकर्षायुं छे एवी क्षांति नामनी कन्या तारी समीपे स्वयंवरा थईने आवशे. सारी दयारूपी कन्याने ईच्छता एवा तारे पवित्र एवी रुचिने सदा मान्य करवी. पापी एवा परोपतापने विशेषपणे छोडी देवो. "मिथ्याशास्त्राणि नो कर्णे कर्तव्यानि कदाचन।" मिथ्यात्वीनां शास्त्रो कदीपण काने सांभळवा नहि. मन, वचन अने कायाथी षट्काय जीवनी विराधना करवी नहिं. अभक्ष्य-अनंतकाय वगेरे पदार्थोनो विशेषपणे त्याग करवो. सर्व प्राणीओने हृदयमां आत्मवत् चिंतववा, परोपकार करवो. आरंभने आदरपूर्वक वर्जवो, पाप कर्मोमां प्रचंड एवो अनर्थदंड छोडी देवो. सदा पांच समिति अने त्रण गुप्तिनुं पालन करवू. बीजानुं दुःख जोईने कदि पण हसवू नहिं. आ प्रमाणे नित्य करवाथी तारा ते गुणोवडे जेणीनुं हृदय आकर्षायुं छे एवी दया नामनी कन्या तारी समीपे स्वयंवरा थईने आवशे. मृदुभावनी इच्छा राखनारा एवा तारे सदा विनयताने मान आपq. तेमां विद्वानोए धिक्कारेलो अनार्य अने असार एवो अहंकार निवारवो. जो ब्राह्मण वगेरे वर्णोमांथी थयेली जातिमां जन्म थयो होय, तो ते उच्च जातिनो मद करवो नहिं. कारण के द्वैतना अभावथी पूर्वे सर्व एक वर्ण ज हतो. तेने माटे बीजे स्थळे लख्युं छे के "हे युधिष्ठिर राजा, प्रथम आ सर्व एक वर्णवाळु हतुं. क्रिया कर्मना विभागथी चारे वर्णोनी व्यवस्था थई छे. ब्रह्मचर्यवडे ब्राह्मणो थया छे. हाथमां हथीयारो राखवाथी क्षत्रियो थया छे. वेपारथी वैश्यो थया छे. अने प्रेषण-सेवा करवाथी शुद्रो थया छे. प्रथम जन्मवडे शूद्र उत्पन्न थाय छे. पछी संस्कार करवाथी द्विज कहेवाय छे. ज्यारे ते वेद भणे त्यारे विप्र कहेवाय छे अने ब्रह्मने जाणे त्यारे ब्राह्मण कहेवाय छे. जे श्रीमाळीउपकेश वगेरे जे जातिओ थई छे ते ते ग्रामना नाम उपरथी थई छे. एम विद्वानोए श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 190
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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