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________________ भावतत्त्वना स्वरूप उपर चंद्रोदरनी कथा करी जेथी राजा पद्मसेननी इच्छा दीक्षा लेवानी थई, तेवामां दैवयोगे गुरु ब्रह्मगुप्तसूरि आवी चड्या. उद्यानपाळ पासेथी ते खबर जाणी राजा हर्षथी गुरु पासे गयो अने विधिथी ते वंदनीय गुरुने वंदना करी तेणे आ प्रमाणे विज्ञप्ति करी-।।७५४।। "हे क्षमापति, सुखना खोटा आभास रूप एवा गृहावास उपर मने निर्वेद उत्पन्न थयो छे, माटे सुख धर्मना कारण रूप एवं अनगारपणुं मने आपो." गुरु बोल्या-"महाभाग, तुं प्रथम दश कन्याओने परणीश अने ते कन्याओमां तारो प्रेमबंध थशे, त्यारे हुं तने दीक्षा आपीश, ते सिवाय नहि आपुं." ते सांभळी राजा विचारमां पडी गयो के, "गुरुए आ शुं कडं? साधुओने आq वाक्य कहेवू घटित नथी, कारण के तेओ तो वाद निवारण करीने निवृत्ति मार्गे ज चालनारा छे." आ प्रमाणे विविध विचारो करी राजाए गुरुने कडं, "हुँ आगळ परणेली स्त्रीओने छोडी देवा ईच्छु छु, तो फरी बीजी स्त्रीओने केम पर[?" गुरु बोल्या, "राजन्, ए चेतना सहित दश कन्याओ तारे हाथ आवी हशे, तो ज तारी दीक्षा सफल थशे. राजा मारा कहेवानो भावार्थ कहुं ते सांभळ ते जाणवाथी ज माणस शरीरे पण सुखी थाय छे. पुण्य कर्मथी एवा आ मनुष्य क्षेत्र रूपी शरीरमां जेमां रत्नोए अंधकारनो नाश करेलो छे. एवं स्वांत-हृदय नामे एक नगर छे ते स्वांतहृदय नगरमां रुचिर-अध्यवसाय-शुभध्यवसाय नामे एक लोकसमहने प्रिय एवो राजा छे. ते राजाने घणी प्रिय स्त्रीओ छे, तेओनी साथे ते अनुक्रमे क्रीडा करे छे. तेओमां शांति नामनी एक स्त्री छे, तेणीने क्षमा नामे पुत्री छे, बीजी रुचि नामनी । स्त्री छे. तेणीने दया नामे पुत्री छे. त्रीजी विनयता नामे स्त्री छे, तेने मृदुता नामे कन्या छे. चोथी समता नामे स्त्री छे, तेणीने सत्यता नामे पुत्री छे. पांचमी शुद्धता नामे स्त्री छे, तेणीने ऋजुता नामे कन्या छे. छट्ठी पापभीरुता नामे स्त्री छे, तेणीने अवैररता नामे पुत्री छे. सातमी नीरागता नामे स्त्री छे तेणीने ब्रह्मरति नामे कन्या छे. आठमी निर्लोभता नामे स्त्री छे, तेणीने मुक्तता नामे कन्या छे. नवमी प्रज्ञा नामे स्त्री छे, तेणीने विद्या नामे पुत्री छे. अने दशमी विरति नामे स्त्री छे, तेणीने निरीहता नामे कन्या छे. हे राजा, जो तारा हृदयमां हमणां दीक्षा लेवानी अभिलाषा होय तो तुं ए दश कन्याओ पाणिग्रहण कर." आ सांभळी राजा बोल्यो- "हे श्री गुरो! तमारा प्रसादथी में ते कन्याओना स्थान अने तेमना मातापितानां नामो जाण्यां छे, हवे तमे ते कन्याओनी प्राप्तिनो उपाय कहो अने तेमनो प्रभाव कहो. जेथी हुँ तमारा प्रसादथी विषाद रहित थाउं." गुरु बोल्या, "राजा, तारे ते कन्याओना पिताने प्रथम तारा हृदयरूपी श्री विमलनाथ चरित्र - तृतीय सर्ग 189
SR No.005931
Book TitleVimalnath Prabhunu Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages378
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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